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शिव में सती, सती में शिव(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))


शिव में सती,सती में शिव
*दो अस्तित्व पर एकाकार*
दोनों पूरक एक दूजे के,
जैसे सपना होता हो साकार।।

*जब भी देखी मैंने अपनी परछाई*
*अपनी नहीं, छवि तेरी मुझे 
साजन नजर आई*
प्रेम की इससे बेहतर
 नहीं कोई परिभाषा,
मेरी छोटी सी समझ ने 
बात बड़ी सी समझाई।।

*प्रेम शक्ति है,समर्पण है
विश्वास है,सम्मान है*
शिव सती के प्रसंग ने
मेरे चित में ये बात बिठाई।।

मैने पूछा प्रेम से रहते हो कहां??
हौले से मुस्कुरा दिया प्रेम और बोला "कैलाश पर*
 युगों युगों से
शिव पार्वती रहते हैं जहां।।

जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे,
जब कुछ भी नहीं होगा तब भी शिव होगें,स्वयं भू हैं शिव,
शिव महिमा सच अपरंपार।।
सत्य ही शिव है,शिव ही सुंदर है
जान गया ये विहंगम संसार।।


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