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सपने बुनते बुनते कब लम्हे उधड़ते गए(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*सपने बुनते बुनते कब  लम्हे उधड़ते गए*
         ** पता ही नहीं चला**

*जिंदगी के सफर में हमसफर संग चलते चलते कब बीत गए 25 साल*
          **पता ही नहीं चला**

*दो जिस्म कब एक जान बन गए*
            **पता ही नहीं चला**

*संग संग रहते कब पल पल संग रहने की आदत सी ही हो गई*
             **पता ही नहीं चला**

*कब रंगरेज बन एक दूजे के रंग में रंग गए*
            ** पता ही नहीं चला**

*ख्वाब बन गए कब हकीकत**            **पता ही नहीं चला**

**कब प्रेम की करुणा से हो गई सगाई**
            **पता ही नहीं चला**

**कब अनजान डगर के  दो मुसाफिर सात जन्मों के बंधन में बंध गए**।   
            **पता ही नहीं चला**

**कब मौन की भाषा समझ आने लगी**
**कब चेहरे और नयन पढ़ने आ गए**
       **सच में पता ही नहीं चला**

**कब धड़कन धड़कन संग बतियाने लगी**
           **पता ही नहीं चला**

 **कब बिन कहे एक दूजे की जरूरतें समझ आने लगी**
            **पता ही नहीं चला**

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