Skip to main content

राधा मीरा और रुक्मणि(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))



*राधा मीरा और रुक्मणी*
एक दिन स्वर्ग में मिल जाती हैं।
 *तीनों कान्हा की प्रेम दीवानी*
कुछ ऐसे बतियाती हैं..

कहा रुकमणी ने दोनों से," कैसी हो तुम मेरी प्यारी बहनों??
 कैसे बीत रही है जिंदगानी?
 हम तीनों के प्रीतम तो *कान्हा*ही हैं,पर सुनाओ आज मुझे अपनी अपनी प्रेम कहानी।।

 सबसे पहले मीरा बोली," मैं तो सांवरे के रंग रांची" 
भाया ना मुझे उन बिन कोई दूजा।
 बचपन से ही उन्हें माना पति,प्रीतम,रक्षक मैंने,
निसदिन मन से की उनकी है पूजा।।

 उन्हें छोड़ किसी और की कल्पना नहीं हुई मुझे कभी स्वीकार।
* जहर का प्याला पी गई मैं तो*
 सपनों में भी किए कान्हा के दीदार।।
सांस सांस बसते हैं वे चित में मेरे,
 उन से शुरू, उन्हीं पर खत्म हो जाता है मेरा संसार

* नहीं राणा को मैंने माना 
कभी भी अपना सच्चा भरतार*
 करती थी, करती हूं,
 करती रहूंगी सदा *श्याम* से सच्चा प्यार।।

*मेरो तो गिरधर गोपाल,
दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट,
मेरो पति सोई*

*मेरे तो इस पूरे जग में हैं 
केवल गिरधर गोपाल*
मोर मुकुट सजता है 
जिनके सिर पर,
*वही प्रीतम मेरे हैं बड़े कमाल*

*अधर सुधा रस मुरली राजति,
उर बैजन्ती माल
बसो मोरे नैनन में नंदलाल*

जिनके अधरों पर सजी बांसुरी अमृत रस घोले, 
गले में बैजन्ती माला जैसे अपने मुख से बोले
*मोहिनी है मूरत जिनकी,
सांवली है सूरत जिनकी
 और नयन हैं उनके बड़े विशाल*
*छोटे छोटे घुंघरू उनकी कमर पर लगते हैं बड़े मोहक, उनकी झंकार 
बड़ी कमाल*

*निज आंसुओं से मैने कृष्ण प्रेम रूपी बेल को सींचा है,बड़ी हो गई बेल है अब ये,लगने लगे हैं आनंद फल*
*मेरा तो बीता कल भी कृष्ण थे,आज भी कृष्ण हैं और कृष्ण ही हैं मेरा आने वाला कल*

*हरो म्हारी पीर*
द्रौपदी की लाज बचाई थी जैसे,
*भगत प्रहलाद*का बचा लिया था शरीर।
हाथी को भी बचा लिया था,
हर लेते हो सबकी पीर 
ऐसे ही हर लो कष्ट मेरे सारे,
मेरी पीड़ा कह रहे मेरी आंखों के नीर।।

केवल *पा लेना* ही प्रेम नहीं,
किसी को बिन पाए भी उसी का हो कर रहना प्रेम है।
जो समझाया ना जा सके,रूह को गहराइयों तक महसूस हो,वह प्रेम है।
वह सुंदर अहसास *प्रेम* है हर आहट में जिसके आने का विश्वाश शामिल हो
*शब्दों से परे*जो बंद आंखों से महसूस हो वह प्रेम है
कुछ ऐसा सा प्रेम है मेरा मेरे माधव से,हरो म्हारी मन की पीर 

 मीरा के सच्चे समर्पण को सुनकर रुकमणी अचंभित हो आई ।
*अति उच्च दर्जे का* मीरा प्रेम है 
रुक्मणि को सच्चाई समझ में आई।।
मीरा ने तो बिन ब्याह के ही पा लिया गिरधर को,
सागर से भी गहरी इसके
 प्रेम और भगति की गहराई।।
आज खुल गई आंखें मेरी,
मात्र मेरे ही नहीं हैं *कृष्ण कन्हाई*
        स्नेह प्रेमचंद

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...

बुआ भतीजी