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ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ(( प्रयास स्नेह प्रेमचंद द्वारा))



*झारखंड के देवघर में*
 बाबा वैद्यनाथ हैं विराजमान
*शक्तिपीठ* भी है ये एक,
कण कण में शिव शोभायमान

हर कामना भत्तों की होती है
 यहां पूर्ण,
*कामना लिंग* का भी मिला है
इसलिए इसे नाम।।
रावण से शिवलिंग लेकर भगवान विष्णु ने यहां किया था स्थापित,
ऐसी मान्यता,नहीं अनुमान।।

महाशिवरात्रि पर बाबा का होता यहां *विशेष श्रृंगार*
शिव पार्वती का महाभिषेक होता है पहर यहां चार।।

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

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सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

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