सत्संग क्या है,एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना,एक दूसरे की ज़रूरत समझ कर यथासंभव पूरा करने का प्रयत्न करना,समर्थ का असहाय लोगों की सहायता के लिए खुद आगे बढ़ कर आना,माँ बाप का आजीवन ध्यान रखना,प्रेम करना,सेवा करना,केवल माँ बाप का ही नही ज़रूरतमन्द की सहायता करना, छोटों को प्रेम और मर्गदेर्शन करना,बेटियों को सदा बेटों के सामान शिक्षित करना,संस्कारवान बनाना,भूखे को रोटी देना,मधुर भाषा का प्रयोग,रिश्तों की गरिमा बनाये रखना ,हिंसा का मार्ग न अपनाना,प्राणियों पर दया भाव रखना यही सत्संग है,मनो चाहे न मानो,मंदिर,मस्ज़िद,तीर्थ धाम, सबसे बढ़ कर प्रेम का काम
कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक
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