राधा मीरा और रुक्मणी एक दिन स्वर्ग में मिल जाती हैं।
*तीनों कान्हा की प्रेम दीवानी*
कुछ ऐसे बतियाती हैं..
कहा रुकमणी ने दोनों से," कैसी हो तुम मेरी प्यारी बहनों??
कैसे बीत रही है जिंदगानी?
हम तीनों के प्रीतम तो कान्हा ही हैं पर सुनाओ आज मुझे अपनी अपनी कहानी।।
सबसे पहले मीरा बोली," मैं तो सांवरे के रंग रांची" भाया ना मुझे उन बिन कोई दूजा।
बचपन से उन्हें माना पति मैंने निसदिन मन से की उनकी है पूजा।।
उन्हें छोड़ किसी और की कल्पना नहीं हुई मुझे कभी स्वीकार।
* जहर का प्याला पी गई मैं तो*
सपनों में भी किए कान्हा के दीदार।।
नहीं राणा को मैंने माना
कभी भी अपना सच्चा भरतार।
करती थी, करती हूं, करती रहूंगी सदा शाम से सच्चा प्यार।।
मीरा के समर्पण को सुनकर रुकमणी को ईर्ष्या हो आई ।
अति उच्च दर्जे का मीरा प्रेम है
रुक्मणि को सच्चाई समझ में आई।।
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