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ध्रुव तारा(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

क्यों गगन में युगों युगों से चमक रहा है ध्रुव तारा
पिता प्रेम पाने की खातिर,घोर तपस्या का बालक ध्रुव ने लिवा सहारा
सौतेले भाई को देख पिता की गोदी में,उसके बाल मन ने भी पुकारा
मैं भी बैटूँगा गोदी में आपके,करो न पापा मुझ से किनारा
सौतेली माँ ने दिया उतार उसे,और पिता समक्ष उसे दुत्कारा
पहले अपने को इससे योग्य बनाओ,सुन बालमन ने सच्चे दिल से प्रभु को पुकारा
देख ध्रुव की घोर तपस्या विष्णु को चुप रहना न हुआ गवारा
दे दिया वरदान उसे अमर रहने का,कहा सदा सदा यूँ ही गगन में चमकेगा ध्रुव तारा

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

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