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जब मन राधा होना चाहे(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

जब मन राधा राधा होना चाहे
हर चितवन कान्हा हो जाए
समझो होली आ गई।।

जब सारे भेद भुला कर,
एक दूजे को गले लगाएं,
समझो होली आ गई।।

जब उल्लास रचाने लगे रास,
जब अहंकार भस्मित हो जाए,
जब स्नेह की रंगोली
भाईचारे के इंद्रधनुष के हाथ पर
राखी बांध दे,समझो होली आ गई
 
जब मन में कोई मलाल ना हो,
 जब दिल में कोई गांठ न हो,
चित में कोई नैराश्य न हो,
जब कोई अवसाद विषाद न हो,
जब चित से सब धुंध कुहासे हट
जाएं,समझो होली आ गई।।

जब प्रेम रंग में भीग जाएं
अंतर्मन के गलियारे,
जब करुणा के,
 चित में खुल जाएं सारे फव्वारे,
समझो होली आ गई।।
जब सामाजिक बंधनों की गिरह
खुल जाए,समझो होली आ गई।।


जब सौहार्द करने लगे आलिंगन
जिजीविषा का,
जब मस्ती की मांग में आ कर उल्लास भर दे गुलाल समझो होली आ गई।।

जब मन में कोई द्वंद ना हो
जब चित में कोई कष्ट क्लेश न हो
समझो होली आ गई।।

जब मीरा मीरा सा मन गोविंद गोविंद गुनगुनाए,समझो होली आ गई।।





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