आस्था जब पहनती है लहंगा प्रेम का,
और ओढ़ती है चुनर विश्वास का,
फिर वह श्रद्धा बन जाती है।।
श्रद्धा जब मांग भरती है समर्पण की,
मंगलसूत्र पहनती है भाव का,
फिर वह भगति बन जाती है।।
भगति जब होती है सच्चे मन से,
जब साड़ी पहनती है वो निर्मलता की,
घूंघट करती है सौहार्द का,
फिर कण कण में रमती है।।
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