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राधा ने जब पूछा रुक्मणि से(( भगति भाव स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*सुन राधा की प्रेम भरी बातें
रुकमणी के फूटे कुछ ऐसे उदगार*
आज खुल गई आंखें मेरी,
हो गए सारे भ्रम मेरे आज तार तार।।

राधा मीरा! 
तुम दोनो का कद तो
आज कुछ ज्यादा ही बढ़ आया है।
धुंधला धुंधला था जो मंजर
जैसे साफ हो आया है।।
 "प्रेम भाव*मुझे युगों युगों के बाद तुम दोनो ने समझाया है।।
मैने भी तुम दोनों की भांति 
उनको सदा मन से चाहा है।

 समझा सदा खुद को 
अधिक *धनी किस्मत की*
 पति रूप में जो उन्हें पाया है ।।
ना मीरा ने, ना राधा ने,
 *सिंदूर* तो रुकमणी की ही मांग में श्याम ने सजाया है।।

 बेशक मंदिर में मेरा किया हरण पर *अर्धांगिनी*  रूप में मुझे अपनाया है। 
मेरा तन मन भीगा *कान्हा प्रेम*से,
मैने ऐसा *रंगरेज* अनोखा पाया है।।

 दुनिया के हर सुख को बहनों उन्होंने मुझ पर लुटाया है।।
मैं हो गई *पूर्ण पूर्ण* सी,
मोहे सांवरे ने अंग लगाया है।।

 *पर तुम दोनों जो दमदम दमकती हो*बहनों, उस रूप ने मेरे नयनों को चुंधियाया है।
राधा कान्हा का प्रेम तो प्रेम का *सबसे ऊंचा शिखर* है,
जहां कोई और पहुंच नहीं पाया है।।
मीरा का *साचो समर्पण* मुझे आज ही नजर आया है।।
भगति में होती है शक्ति
मीरा ने जैसे जग को समझाया है।।

राधा ने जब जब देखा है दर्पण,
अक्स कान्हा का ही नजर इसे आया है।।
दो नहीं एक हैं राधा कान्हा,
मुझे अब समझ में आया है।।

 द्वारकाधीश रहे व्यस्त महाभारत के युद्ध में,
 अर्जुन सारथी का किरदार उन्होंने बखूबी निभाया है।।
जहां जहां विचलित हुए पार्थ,
वहां माधव ने मार्ग दिखाया है।।
भरी सभा में  जब पुकारा पांचाली ने,कृष्ण ने उसका चीर बढ़ाया है।।
समर्पण होता है जब अच्छा,
भगत के लिए भगवान भी चल कर आया है।।
 
  धर्म की होती आई है जीत सदा यह उन्होंने पूरे विश्व को बताया है।।
 
जब जब होती है हानि धर्म की,
 तब तब मोहन दौड़ा आया है।। 
धर्म और साधुओं की रक्षा करने का अपना दायित्व निभाया है।।

दिया ऐसा *गीता ज्ञान*उन्होंने,
 जग में हर व्यक्ति के काम जो आया है।।
मोहग्रस्त हर अर्जुन को सन्मार्ग कान्हा ने ही दिखाया है।।
*कर्म ही जीवन है*
इस भाव का दीपक जन जन के चित में जलाया है।।
 
राधा मीरा मेरी प्यारी बहनों!
 हम तीनों के ही नहीं,
 कान्हा ने हर चित में घर एक बसाया है।।
 जब तक धरा और गगन रहेंगे
कान्हा कण कण में धर्म और करुणा भरेंगे।।

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