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इस बार की होली में(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**तन संग मन भी रंग लें,
इस बार की होली में**

**होलिका दहन में दहन कर दें
 सारे विकार चित के,
 इस बार की होली में**

**अमीर गरीब,
 जाति मजहब हर दीवार गिरा दें,
इस बार की होली में**

**प्रेम पिचकारी में जल भर सरसता और समरसता का,
भिगो दें अंतर्मन के गलियारे,
इस बार की होली में**

**जिजीविषा के भाल पर तिलक लगाएं इस बार की होली में**

"*पड गई हैं जो गांठें दिलों में,
उन्हें हौले हौले खोल दें प्रेम उंगलियों से,
इस बार की होली में**

**मलिन मनों से हटा दें
 सब धुंध कुहासे,
इस बार की होली में**

""स्नेह गुलाल से हर कपाल लाल 
कर दें इस बार की होली में**

**करें वितरण रंग गुब्बारों का अभाव ग्रस्त लोगों में,
इस बार की होली में**

**अहम से वयम की बयार 
चला दें इस बार की होली में**

**हर मन राधा हर चितवन कान्हा बना दें,
इस बार की होली में**

"*राधा कान्हा सा रास रचा दें,
इस बार की होली में**

**अपने गांव में बैठे हैं
 जो बूढ़े मात पिता
उनके हृदय रंग दें वहां जा कर,
इस बार की होली में**

"*जिनके बच्चे नहीं आ पाते,
बन बच्चे उनके चित भी रंग दें इस बार की होली में**

**अपने गली, कूचे,गलियारों को रंग दें सौहार्द रंग से हमारा प्यार हिसार समूह सा,इस बार की होली में**
क्यों ना कुछ ऐसा हो जाए????

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