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मैं मांडवी रामायण की(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मैं मांडवी रामायण का
 एक खामोश सा दर्द भरा किरदार*
*मेरी पीर ना जाने कोय जग में,
मुझे छोड़ गया वन में भरतार*

*मिला तो वनवास श्री राम को था
पर भोगा मैने भी इसे,
हुआ जिया मेरा तार तार* 
* भाई संग धारे वलकल
 मेरे साजन ने भी,
ऐसा भाई भाई का विलक्षण प्यार*

*भाई  ने भाई को मनाने के लिए
परिवार सहित किया वन बिहार*
11 स्वर और 33 व्यंजन नहीं बता सकते,
जाने कितनी की उन्होंने भाई से मनुहार।।
लौट चलो भाई घर को,
पूरी अयोध्या कर रही इंतजार।।
*जनमत और नीति* में से नीति का
चयन किया राघव ने,
पिता वचन निभाने का निभाया किरदार।।
नहीं माने जब रघुराई,
तब खड़ाऊ सिर पर साजन में लिए धार।।
खड़ाऊ सिहांसन पर रख कर राज किया बरस 14,
ऐसे प्रिय भरत धरा पर सोए बिन राम के,
मेरे चित में सम्मान है उनका बेशुमार।।

पर मेरे मन के किसी  कोने में एक 
*रडक* सी करती रहती है बसेरा
भाई प्रेम तो निभा गए साजन,
पर दांपत्य जीवन का अस्त कर गए 
सवेरा।।।

*दीदी जानकी ने तो पति संग ही किया था वन गमन*
*मैं तो महलों में भी रही दीन दीन सी,
आता है ख्याल जेहन में,
जब भी करती हूं मनन*

मेरा भी वनवास था ये बरस 14 का,
*सांस सांस* पिया भरत का किया इंतजार।।
मैं मांडवी रामायण का एक खामोश सा किरदार।।



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