रसोई और बिस्तर की ही शोभा नही होती नारी,विहंगम होता है व्यक्तित्व नारी का ,जानो
सृजनकर्ता है वो सृष्टि की,
उसकी ताकत का लोहा मानो
मत लूटो बन दुशासन किसी भी द्रोपदी को,
बहुत हुआ अब तो सहजता का दामन थामो
आधी आबादी को दो दर्ज़ा बराबरी का,उसकी शक्ति को पहचानो
वो चाहती है बस शांति और स्नेहधारा,उसके मन की तह को जानो।।
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