अक्षर ज्ञान भले ही ना हो,
पर मां को चेहरा पढ़ना आता था।
शक्ल देख हरारत जान लेती थी,
मां से दिल का बहुत ही गहरा नाता था।।
हर समस्या,
समाधान से हाथ मिला लेती थी जब साथ था मां का,
चित चिंता मुक्त हो जाता था।।
मां जीवन का वो दर्पण थी,
जिसमे अक्स अपना नजर आता था।।
*उपलब्ध सीमित संसाधनों* में भी मां को उत्सव मनाना आता था
हर कर्म को करती थी आनंद से,
मां का जिजीविषा से पुराना नाता था
वो कैसे सब कुछ कर लेती थी?
न आज समझ में आता है, न पहले ही समझ में आता था।।
मां तो सच *जन्नत* का नाम है दूजा,
मां से रिश्ता पल पल हिना सा गहराता था।।
**मां कहीं नहीं जाती**
रहती है विचारों में सदा,
जिक्र आज भी उसका भाता है,
जिक्र कल भी उसका भाता था।
मां का स्नेह एक संपूर्णता सी लिए हुए था भीतर,
मां जैसे जलजात के संग मन सागर सा हो जाता था।।
जो लम्हे गुजारे संग मां के,
हैं,आज भी वे मेरी अनमोल धरोहर,कैसे वक्त संग मां के पल भर में गुजर जाता था।।
मां से बेहतर कोई मित्र नहीं हो सकता,मां से सच में गुरु,सलाहकार और पथ प्रदर्शक का नाता था।।
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