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खुशी तो है अंतर्मन का अहसास(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*खुशी कभी नहीं मिलती बाहर से, खुशी है अंतर्मन का एहसास*
* कोई तो कुटिया में भी खुश है
 किसी को महल भी नहीं आते रास*

*शुक्रिया*या *शिकायत* दोनों में हम जिसका भी करते हैं इंतखाब 
खुशी और गम का इनसे ही होता है सरल सीधा स्पष्ट हिसाब

* शुक्रिया* है सच्चा मित्र खुशी का, *शिकायत* है गम की साकी 
*जिसने समझ ली बात यह सच्ची
 अधिक समझना नहीं रहता बाकी* 

*खुशी लेने में नहीं देने में है
 ले कर तो देखो किसी के दर्द उधारे* *खुशी दे देगी दस्तक जिंदगी की चौखट पर सांझ सकारे*

 **खुशी महलों में ही होती तो बुद्ध जंगल में ना जाते 
खुशी मनमानी में होती तो राम पिता वचन कभी ना निभाते*" 

खुशी *उमंग* है *उत्सव* है और खुशी का दूजा नाम है *उल्लास*
 *खुश व्यक्ति आम नहीं रहता
 सच में बन जाता है अति खास*
 
*मलिन मनों से हट जाते हैं जब धुंध कुहासे, लोग इर्षा और विषाद*
* बिन बुलाए खुशी आ जाती है ऐसे बहती है जैसे कोई नदिया निर्बाध** 

*मुफ्त में ही मिलती है खुशी 
खुशी का नहीं होता कोई मोल*
* मन झट से प्रसन्न हो जाता है
 बोलता है जब कोई मधुर से बोल* 

मैंने पूछा खुशी से," रहती हो कहां? हौले से मुस्कुरा दी खुशी और बोली **कला, संगीत ,साहित्य की त्रिवेणी बहती है जहां** 

**वहां पर भी है मेरा बसेरा प्रेम,करुणा, निर्मलता होती है जहां
जहां संवेदना चित में बड़े चैन से रहती है, चली जाती हूं मैं वहां**

 *जब बच्चे आलिंगनबद्ध हो जाए बिन बात ही,
मन हर्षित हो जाता है*
* सच्चे प्रयासों से वांछित उपलब्धि पाकर,मन झूम झूम कर गाता है*

* खुशी एक अनमोल निधि है
 खुशी है दिल का सुखद एहसास *सबसे धनवान है वही जीवन में
 यह *संजीवनी बूटी* है जिसके पास 

*जब भी कहीं कोई कोयल किसी बाग में पंचम स्वर में गाती है
अपनी मधुर वाणी से वह
मन हर्षित कर जाती है*

*खुशी नहीं मिलती बाहर से
 खुशी तो है अंतर्मन का एहसास
 कोई तो कुटिया में भी खुश है
 किसी को महल भी नहीं आते हैं रास**

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