*राम से पहले सीता है
औऱ शाम से पहले राधा*
और नही कोई, नारी है वो,
*सृष्टि का हिस्सा आधा*
आशा है,मर्यादा है,
है नारी भक्ति श्रद्धा और विश्वास।
सौंदर्य,क्षमा,है वो विद्या वाणी,
ईश्वर की रचना बड़ी खास।।
लज्जा उसका गहना है,
उसे आता खामोश भी रहना है।
वो कोमल है कमज़ोर नही,
अन्याय और शोषण उसे नही सहना है।।
बेटी,बहन,पत्नी,माता
हर रूप में उसका खास ही नाता।
सम्मानीय है वो,वन्दनीय है वो
सृष्टि की सच मे धुरी है वो,
अधिक की कभी नही करती अभिलाषा
थोड़े में भी खुश रहने की
सदा होती उसे आशा।
वात्सल्य का कल कल बहता
है वो झरना,
करुणा से सदा ही उसने हिया को आता है भरना।
लघुता,हवस,तिरस्कार
न रखो ऐसे भाव में में नारी के लिए,
जो रखे,है उसको धिक्कार।।
अपनी जान पर खेल हमें
वो इस जग में लाती है
कितनी भी हों भीतर परेशानी
फिर भी ऊपर से मुस्काती है
हर संभव करती है कोशिश
निभाती है अपना हर वादा
राम से पहले सीता है,
और शाम से पहले राधा।
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