Skip to main content

Earth day special सोचो सुधारो,संवारो धरा को(( विचार स्नेह प्रेमचंद))

*कहते हैं आज *पृथ्वी दिवस* है,
होता नहीं इस कथन पर विश्वास*
कौन सा दिन है बिन धरा के???
*सच धरती है मां,पिता है आकाश*

 **सोचो,सुधारों,संवारो**
 अपनी धरा को,
*और न हो अब 
पर्यावरण का ह्रास*
*प्रदूषण गर फैला 
इसी गति से,
होगा कैसे धरा पर
 जीवन का वास??

*जल,ध्वनि,वायु,भोजन सभी प्रदूषण हैं आज कुछ हद से आगे*
कैसे रहे पर्यावरण शुद्ध हमारा??
*जब कर्तव्य कर्मों से हम सब हैं भागे*

*सांझे से प्रयास हमारे,
वातावरण को बना सकते हैं खास*
*सोचो,सुधारो,संवारो *
अपनी धरा को,
और ना हो अब
पर्यावरण का ह्रास।।

*उस देश के वासी हैं हम,
जहां धरती को माता कहते हैं*
*फिर मां की कोख कैसे उजाड़ सकते हैं हम,
हम तो मां के दिल में रहते हैं*

मां का आंचल ना हो मैला,
कोई करे भी तो हम क्यों मिल कर सहते हैं????
विचारो,लो प्रण ऐसा,
*प्रकृति का हनन ना हमे आए रास*
प्रदूषण गर फैला इसी गति से,
कैसे होगा धरा पर जीवन का वास??

*आओ धरा का अस्तित्व बचाए*
शुद्ध हवा में हर प्राणी ले पाए श्वास
तेरी मेरी नहीं, है,ये सामूहिक जिम्मेदारी, 
*हो सबको इस का आभास*

*कहीं लगाए त्रिवेणी*
*कहीं औषधीय पौधों से हो
धरा का सुंदर श्रृंगार*
*मां धरा को हो गर्व 
अपने बच्चों पर,
हो ऐसी ही शिक्षा,ऐसे ही संस्कार*

*उम्मीद का एक दीया मेरे शहर में भी टिमटिमाता है*
*हमारा प्यार हिसार* नाम है इस परिवार का,
*जो हर रविवार मां के आंचल को सुंदर बनाता है*
*स्वच्छता,सौंदर्य और जागरूकता का निर्बाध सा झरना लगातार यहां बहता है*
ना दिन देखते हैं ना रात देखते हैं ये मतवाले,
 जन जन अब ये कहता है।।

स्थान स्थान पर रोपित कर पौधे,
प्रकृति को सुंदर बनाता है।।
धरती मां के प्यारे बच्चे करते हैं अलंकृत अपनी मां को,
राहगीर देख इन्हे थोड़ी देर ठिठक जाता है।।
क्यों ना ऐसी अनोखी पहल 
हर गांव,शहर हर कस्बे को 
आ जाए रास।।
जोश जज्बे और जुनून की जब बहने लगेगी त्रिवेणी,
मां धरा फिर से मुस्कुराने लगेगी अनायास।।
मां,मातृ भूमि और मातृ भाषा के लिए,है, हम सब की नैतिक जिम्मेदारी
*बहुत सो लिए,अब तो जाग लें,
कर्तव्य कर्मों की आ गई है बारी*

जागरूकता जब अपनी मांग में कर्तव्य बोध का सजा लेगी सिंदूर
मेरी धरा फिर से महकेगी,
हर समस्या हो जाएगी दूर।।

तुम भी आओ,हम भी आएं,
आओ मिल कर करें हम सबका विकास।।
सोचो,सुधारो,संवारो अपनी धरा को,
हो ना अब और पर्यावरण का ह्रास।।
        स्नेह प्रेमचंद


Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी