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*वही मित्र है*(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*भोर होते ही जो आ जाए जेहन में*
 **वही मित्र है**

**कह सकें हम जिनसे बात दिल की**
**वही मित्र हैं**

 *संवाद सुस्ता भी जाए पर संबंध
 गहराते जाएं*
 **वही मित्र है**

*औपचारिकता की जिनसे नहीं होती कोई जरूरत* 
**वही मित्र हैं*"

*जाति,धर्म,रंगभेद,प्रांत,शहर,आयु
हर सरहद से जो पार खड़े हैं*
**वही मित्र हैं**

 *सहजता दामन नहीं चुराती संग जिसके*
 **वही मित्र है**

 *ना गिला, ना शिकवा, ना शिकायत हो चित में जिसके*
**वही मित्र है**

 *आहत मन को जो दे दे राहत*
 **वही मित्र है**

*No sorry,No thanku की 
जहां कोई जरूरत न हो कभी*
**वहीं मित्रता है**

 *खुद मझधार में हो कर भी जो साहिल का पता बताए*
**वही मित्र है**

 *दिशाहीन जीवन को जो दिशा प्रदान करें*
 **वही मित्र है**

 *हर ले जो तमस जो जीवन से और भर दे उजियारे*
 **वही मित्र है**

*जीवन की राह जो सरल बना दे*
 **वही मित्र है**

 *हर लम्हा जीवंत और खास बन जाए संग जिसके*
 **वही मित्र है**

 *हमारी चेतना में जो उल्लास का करदे सृजन*
 **वही मित्र है**

 *चित से अवसाद, विषाद, निराशा के जो धुंध कुहासे हटा दे*
**वही मित्र हैं**

*हमारा परिचय जो हमसे करवा दे*
 **वही मित्र है**

*बिन कुछ कहे ही पढ़ ले जो नयनों की भाषा*
 **वही मित्र है**

 *धूप छांव में जो संग खड़ा हो*
**वही मित्र है**

 *हमारी खामोशी के पीछे का कारण जो बिन कहे ही समझ जाए*
**वही मित्र है**

 *हमारी मुस्कान के पीछे छुपी उदासी जो पल भर में पढ़ ले*
 **वही मित्र है**

*उदास लबों पर जो मुस्कान खिला दे* 
**वही मित्र है**

 *मैं हूं ना* कहने में जो जरा भी देर ना लगाएं*
 **वही मित्र है**

 *हर जख्म का जो बन जाए मरहम* 
**वही मित्र है**

 *पल-पल को जो उत्सव बना दे*
**वही मित्र है**

*हास परिहास में जो मन के जलजात खिला दे*
 **वही मित्र है**

 *शब्द नहीं, जो भाव चित के पढ़ ले*
**वही मित्र है**

 *जीवन की राह को जो सरल बना दे* 
**वही मित्र है**

 *अग्निपथ को जो सहज पथ बना दे*
 **वही मित्र है**

*जीवन के किसी भी चक्रव्यूह में जो अकेला न जाने दे*
**वही मित्र है**

 *समय का जिसके संग पता ही ना चले*
 **वही मित्र है**

 *दोस्ती के इंद्रधनुष को जो खिला दे अनंत गगन में*
 **वही मित्र है**

 *सदा हां में हां मिलाने वाले सच्चे मित्र नहीं होते हमारी गलत बातों को भी जो हमें खुलकर बता दें*
**वही मित्र है**

 *हमारा परिचय हमसे ही जो करवा दें*
**वही मित्र हैं**
*हमारे भीतर छिपी सुधार की अथाह संभावनाओं को जो जान ले*
*वही मित्र है*

*मित्र दुर्योधन से नहीं होते*
जो खुद भी गलत होते हैं और
कर्ण जैसे मित्र को भी गलत राह पर ले चलते हैं*

*मित्र तो *माधव* और *राघव* से होते हैं*
*राघव ने सुग्रीव से मित्रता निभाई*
*माधव ने सुदामा से और पार्थ से मित्रता निभाई*

*मोह ग्रस्त अर्जुन को दिया ऐसा गीता का ज्ञान*
*अर्जुन ही नहीं पूरा जग लेता है शिक्षा जिससे,गीता माधव का अनमोल वरदान*

इससे बड़ी मित्रता की पूरे जग में 
नहीं कोई भी मिसाल
**यूं हीं तो नहीं कहा जाता राघव माधव दोनों मित्र रूप में अति कमाल**

#दिल के अनुष्ठान में अपनत्व का यज्ञ होते हैं मित्र#

#जिंदगी की मझधार में एक मजबूत सी पटवार होते हैं मित्र#

#हर उतार चढ़ाव में साथ खड़े होते हैं मित्र#

#एक आवाज पर दौड़े चले आते हैं मित्र#
#हमारे सलाहकार,हितेषी,राजदार होते हैं मित्र#

*मित्र वह संगीत है मधुर सा जो जीवन की हर भोर,दोपहर और सांझ में उतना ही मीठा लगता है*

*मित्र के इत्र से सारा चरित्र महकता है*

*मित्र आस, विकास,वफा और विश्वाश और सबसे मधुर अहसास है*

**हमारी सबसे प्यारी और पहली मित्र मां होती है**

*सबसे धनवान है वो जिसके पास मित्र होते हैं*
*उदासी को मुस्कान में बदलने का सामर्थ्य है मित्र में*
*
*मित्र तो वह हरमोनियम है जिसमे सदा सहजता,उल्लास और जिजीविषा का सुर निकलता है*

*मित्रता तो वह तबला है जहां से सदा सहयोग,प्रेम और विश्वाश की थाप निकलती है*

**इस जग में सबसे बड़ी दौलत है मित्र**

**कुछ कर दरगुजर,कुछ कर दरकिनार**
"*यही होता है सच्ची मित्रता का आधार**


 स्नेह प्रेमचंद

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी