* ऐसी हो सबकी शिक्षा
ऐसे हों पल्लवित संस्कार*
*प्रकृति एक कैनवास
ईश्वर कलाकार*
*अंबर, धरा, दिनकर,चंदा तारे
कितना प्यारा सा परिवार*
*पेड़ पौधों से आच्छादित धरा ने
अगणित पुष्पों से किया श्रृंगार* *इठलाती नदियां,तपस्वी से पर्वत नयनाभिराम जिनके दीदार*
* ऐसी है यह धरती मां*बाहें फैलाए बच्चों पर ममता लुटाने को तैयार *
*प्रकृति एक कैनवास
परमेश्वर कलाकार*
* पिता तुल्य नीला अम्बर*
संरक्षण,विश्वास,सुरक्षा
का करवाता दीदार*
* युगो युगो से हमें पोषित करती
मां धरा ने,
कभी अपनी थकान का ना करवाया आभास*
कभी पतझड़,कभी बसंत,कभी शिशिर,कभी ग्रीष्म
हर मौसम का हुआ इसमें निवास
*नदी, नाले ,पेड़,पौधे,पर्वत,वायु सागर धरती मां के स्थाई परिधान*
*प्रदूषित हो गई संपूर्ण प्रकृति,
हुआ मैला आंचल मां धरा का,
चेहरे पर अब लगती है थकान*
*बहुत सो लिए,अब तो जाग लें
आओ धरा का अस्तित्व बचाएं*
*वन्यजीवन,पर्वत, नदियों का जल
संरक्षित कर के,
नवजीवन सा फिर ले आएं*
*ओजोन आवरण* को बचाने का करे सब भरपूर प्रयास
क्या धरोहर देंगे वरना आगामी पीढ़ियों को हम,
*जब सही से ले भी नहीं पाएंगे वे श्वास*
*प्लास्टिक,वातानुकूलित यंत्र और गाड़ियों का हो कम प्रयोग*
*सर्वत्र लगाएं पेड़ पौधे,
करें एक दूजे का सब सहयोग*
*औषधीय और अलंकृत पौधे
करें ,मां धरा का सोलह श्रृंगार*
*ऐसी हो हमारी शिक्षा,
ऐसे ही हों पल्लवित संस्कार*
*माता भूमि: पुत्रो अहम पृथिव्या*
करें इसी भाव से धरती की सेवा
पहुंचे न आघात मां के ह्रदय को,
*इसी सोच से पाएंगे मेवा*
*तुम भी पाओ,हम भी पाएं*
*स्वच्छ हवा स्वच्छ पानी
सबका हो मौलिक अधिकार*
*प्रकृति एक कैनवास
ईश्वर कलाकार*
*जीवन जितना सादा होगा
तनाव उतना आधा होगा*
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