पहली बारिश की सौंधी माटी की खुशबू सी मा,
घर के गीले चूल्हे में सतत ईंधन सी जलती मा,
चिमटे,बेलन,थापी, झाड़ू में सदा ही लगती सी रहती मा,
हर घाव का मीठा से मरहम बनती मा,
हर मसले का हल बनती सी सीधी साधी न्यारी मा,
घर के झगड़ों पर समझौते का जाने कितनी बार तिलक लगाती मा,
बच्चों की खातिर अपनी इच्छाओं को हौले हौले दबाती मा
गिले शिकवे औऱ शिकायतों से अपना पीछा छुड़ाती मा।।
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