Skip to main content

Poem on Mother's day मां हम जुगनू तूं दिनकर है(( विचार स्नेह प्रेमचंद))

मां कैसे करूं तुझे परिभाषित
11 स्वर और 33 व्यंजन भी कम हैं
 हम जुगुनू तू आफताब है मां
हम हर्फ तूं किताब है मां
सौ बात की एक बात है,
जीवन का सबसे सरल हिसाब है मां

मां जीवन की सबसे मधुर है लोरी
मां रिश्तों की मजबूत सी डोरी
 हम तारे तूं चांद है मां
हम वर्णमाला तूं संवाद है मां

हर संबोधन और उदबोधन
मां अति मधुर होता है तेरा
पहर में से देना हो जो नाम तेरा
कहूंगी इतना तूं मधुर सवेरा

हर धूप छांव में संग खड़ी
हो जीवन में जैसी भी घड़ी
हम बहके कदम मां मजबूत छड़ी

माँ हम प्यासे तो तू जल है,
माँ हम जिज्ञासा तो तू हल है,
मां हम समस्या तू समाधान है,
मां ही श्रद्धा मां ही विगान है

मां तू कुदरत का वरदान है,
माँ हम धरा तू आसमान है,

माँ हम दिल तो तू धडकन है,
माँ हम सुर तो तू सरगम है,
माँ हम बून्द तूं सागर है,
माँ हम नीर तू गागर है,

माँ हम पंख तू परवाज़ है,
माँ तू पर्व,उत्सव,रीति,रिवाज़ है,

मां हम पतंग तो डोर है तूं
मावास के बाद की भोर है तूं

माँ तू ही शिक्षा,तू संस्कार है,
माँ तुझ से होता परिष्कार है,

माँ हम शब्द तू भाव है,
माँ तू मांझी और हम नाव है,

माँ हम अक्षर तू पूरी किताब है,
माँ से बढ़ कर न कोई हिसाब है,

माँ तू ही तीर्थ है तू ही धाम 
तेरे प्रेम का अद्भुत विज्ञान 
,
माँ हम दीपक और तू ज्योति है,
माँ तू सीप के मुख का मोती है,

माँ हम शिष्य तू गुरु हमारा,
माँ  तेरा प्यार है सबसे न्यारा,

माँ हम तख्ती तो तू लेखनी है,
माँ हम स्वार्थी तू निस्वार्थ है,

माँ तू जीवन का आधार है,
माँ तू निश्छल सा प्यार है,

माँ तू मन्ज़िल हम पथिक अज्ञानी,
माँ तेरी महिमा सबने जानी,

माँ तू ही गीता तू ही कुरान है,
माँ तू ही तीर्थ तू ही धाम है,

माँ हम नयन तो दृष्टि हो तुम,
माँ हम प्रकृति तो हरियाली हो तुम,

माँ हम दही तो माखन हो तुम,
माँ हम गन्ना तो मिठास हो तुम,
माँ हम इमारत तो नींव ही तुम,
माँ कुदरत का सर्वोत्तम वरदान हो तुम

मां हर चोट की मरहम है
मां है तो दूर फिर हर गम है
मां तपते मरुधर में हरियाली
मां से ही होते होली दिवाली

मां कुदरत की बेहतरीन है रचना
मां को आता है दिल में बसना

मां ही चित है मां ही चेतना
मां को पढ़नी आती है वेदना
मां ही वेद मां ही उपनिषद
मां ही मंत्रों का गहरा जाप
मां शब्द तो ऐसा बाम है
हर ले चित से जो हर संताप


Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी