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मां और बेटी

एक ही औरत माँ की बेटी और बेटी की माँ भी होती है।
समय बीतने के साथ साथ वो माँ की बेटी कम और बेटी की माँ अधिक बन जाती है।
पर इसका मतलब यह कतई न समझना कि वो अपनी माँ को भूल जाती है,उसकी माँ तो उसमें सदा सदा के लिए जीवित रहती है,उसकी बातों में,ख्यालों में,सोच में,उसके क्रियाकलापों में,उसकी जीवनशैली में,उसके संस्कारों में।
यहाँ पर मौत का भी वश नही चलता, जितना गहरा नाता या लगाव औरत का अपनी माँ से होगा,उसी का दूसरा रूप उसकी बेटी में उसे दिखाई देगा,यह सत्य है।।

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वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

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सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

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