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Poem on Mother सिमटा हुआ है पूरा जहान( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)


 **धरा सा धीरज उड़ान गगन सी 
मां से तो हरे हो जाते हैं रेगिस्तान**

*एक अक्षर के छोटे से शब्द में सिमटा हुआ है पूरा जहान*

न कोई था,न कोई है,न कोई होगा माँ से बढ़ कर कभी महान।।

वो कभी नही रुकती थी,
वो कभी नही थकती थी,
किस माटी से खुद ने उसका किया था निर्माण?
उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी था उसको बरकत का वरदान!!

धरा सा धीरज,उड़ान गगन सी,
*मां से तो हरे हो जाते हैं रेगिस्तान*
धूप धूप सी जिंदगी में,
मां छांव छांव सी,
*मां से खिल जाते हैं गुलिस्तान*

*कर्म की कावड़ में जल भर कर मेहनत का,हम सब को मां तूने आकंठ तृप्त करवाया*
*कर्म के मंडप में अनुष्ठान कर दिया ऐसा मेहनत का,
सब का रोम रोम हर्षाया*
हारी नहीं कभी कर्म से,
मेहनत को अपना शस्त्र बनाया
*कर्म आनंद है* ऐसे संस्कारों का शिक्षा भाल पर तिलक लगाया*
जिंदगी के इस चमन की,
 *मां सबसे प्यारी बागबान*
*हर कली, बूटे,पत्ते का
 रखती अपनी क्षमता से पूरा ध्यान
बिन फल के वृक्ष के लिए भी खाद,पानी,धूप, हवा का करती प्रावधान*
*बहुत छोटा शब्द है मां को कहना केवल महान
मां की गोद में तो हुए आनंदित खुद राघव और माधव भगवान*

*मातृऋण से कभी उऋण नही हो पाएंगे
तिनके सा अस्तित्व  है हमारा तेरी महान हस्ती के आगे,
तुझे आजीवन माँ जेहन में लाएंगे*

*मां प्रेरणा है हम सबके लिए,
मां के आगे नतमस्तक जहान*
*मां के संग तो सच में 
हरे हो जाते हैं रेगिस्तान*

आज भी तू मन के
 हर अहसास में है,
ऐसा लगता है 
जैसे मेरे पास में है,
तू कहीं नही गयी,
तू तो माँ हर जगह में है समाई
कौन सी ऐसी शाम है माँ,जब तू न हो हमे याद आई????

*हमारे आचार में तू,
व्यवहार में तू,
हमारी सोच में तू,
हमारी कार्य शैली में भी नज़र आती है तेरी परछाईं*
*बस एकमातृदिवस तक ही सीमित नही अस्तित्व तेरा,
तू तो हर पल इस जेहन मे है समाई*
एक मां कमी पूरी कर देती है सबकी,
मां है तो पूर्ण सा लगता है जहान
यूं हीं नहीं कहा जाता,
*मां ईश्वर का सर्वोत्तम वरदान*

एक अर्ज़ सुन लेना दाता, 
हर जन्म में मेरी माँ को ही मेरी माँ बनाना
वो कितनी अच्छी थी,कितनी प्यारी थी,थी ज़िन्दगी का सबसे खूबसूरत सा  तराना।।

रोम रोम ऋणी है मां तेरा,
तेरे होने से थी मैं धनवान
मैने भगवान को तो नहीं देखा
पर जब जब देखा तुझे मां मैने,
लगा तूं ही तीर्थ तूं ही धाम

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