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मानो चाहे या ना मानो(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*शिक्षा संग बहुत ज़रूरी हैं संस्कार
सब होते हैं भीतर से गुणों की खान*

*जीती जागती पाठशाला है इसकी
*हमारा प्यार हिसार*
जरा दो दस्तक उसकी चौखट पर मेजबान*

*बच्चे प्रौढ़ और जवान*
अनुकरणीय हैं सबके कदमों के निशान
मातृभूमि से प्रेम है इनको,
*अहम से वयम के हैं ये कद्रदान*

एक स्पार्क है इनके चित में,
जिसका सुलगना रहता है जारी
फिर आलस्य नजरें लगता है चुराने,
*मुस्कुराने लगती है जिम्मेदारी*

*सहर्ष ओढ़ दुशाला जिम्मेदारी का
बन जाते हैं सही मायनों में धनवान*
*देव और दानव दोनों ही हैं भीतर हमारे
किसको जगाते किसको सुलाते,
हमारा चयन ही होता है बलवान*

*सोच,कर्म,परिणाम की त्रिवेणी
यहां निर्बाध गति से बहती है*
*स्वच्छता,जागरूकता,जिजीविषा,
कर्मठता,सुंदरता पांचों बहने संग संग यहां रहती हैं*
*संयम,सम्मान,सौहार्द,अनुराग हैं इनके भाई,यह मैं ही नहीं,पूरे हिसार की जनता कहती है*

*धन्य हैं सदस्य इस परिवार के
धन्य यहां के बागबान*
*भीड़ से हट कर आता है इन्हें चलना
किसी समस्या से ये नहीं अनजान*
*ख्वाब बन जाते हैं हकीकत ऐसे लोगों के,बहुत ऊंची होती है इनकी उड़ान*
*स्वच्छ धरा हो, स्वच्छ हो अंबर
इसी सोच का छूते हैं ये आसमान*
*यहां अपना शिक्षक खुद ही है हर कोई,
मिल ही जाता है हर समस्या का समाधान*

यूं हीं तो नहीं कहा गया है इस पूरे परिवार के लिए
*समाधान हेतु आगमन,संतुष्टि सहित प्रस्थान*



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