*मन की निर्मल गंगोत्री से ही
काव्य गंगा बहती है*
*गंगोत्री से गंगा सागर तक
जाने क्या क्या कहती है*
*जाने कितने ही अनछुए विषयों को छू कर ये बातें प्रभावी ढंग से कहती है*
* ईश्वर के चुनिंदा लोग होते हैं वे,
काव्य धारा जिस भी चित से बहती है*
*मां सरस्वती की कृपा होती है अपार,
मां कृपा अपने बच्चो पर सदा ही रहती है*
कविता लिखने के लिए कविता बनना पड़ता है
ये मैं ही नहीं कहती,सारी कायनात ये कहती है
भाव प्रबल हों गर चित में,
तो अल्फाजों की गंगा बहती है
जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि
ये उक्ति मात्र उक्ति नहीं,
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