*प्रकृति गाती हैं,चेतना में सपंदन कर जाती है"
कभी हँसती औऱ कभी हंसाती है।
जैसे होते हैं मनोभाव हमारे,
वैसी ही नजर हमे आती है।।
मन आहत है तो *सावन भादों*
रोते रोते से नजर हमे आते हैं
मन खुश है ये उमड़ते घुमड़ ते मल्हार मानों अनहद नाद सुनाते हैं।।
कभी कभी उदास भी होती है ये,
जब सूरज ढल जाता है।
कभी कभी रोती भी है ये जब इंसा निरीह बेकसूर बेजुबान प्राणियों पर कटार चलाता है।
फिर कहीं सुनामी,कहीं भू सखलन और कहीं कोई ज्वालामुखी फट जाता है।।
भेदभाव नही करती प्रकृति,
सबसे अच्छी शिक्षक है।
अनुशासन सीखो प्रकृति से,
इसकी गोद में कुदरत है।
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