Skip to main content

फिर से चाहिए(( दिल के उदगार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*फिर से चाहिए मुझे वो बाबुल का अंगना,वो चंचलता चित की,वो मेरी अलमारी,वो मां का प्यार*

*फिर से चाहिए मुझे वो बस्ता स्कूल का,वो मेरी प्यारी गुडिया,वो भाई बहनों से तकरार कभी मनुहार*

*फिर से चाहिए मुझे वो किराए की साइकिल वो किराए की नॉवेल,वो जामुन तोड़ना और वो मांगना बर्फ उधार*

*फिर से चाहिए मुझे वो मां का आंचल,
जिसे जब भी चाहा मलिन करने का था अधिकार*

*फिर से चाहिए वो हुक्के की गुड़ गुड,वो गंडासे की चर्र चर्र,वो खिचड़ी की खद खद,वो तंबाकू की सौंधी सी महकार*

फि*र से चाहिए वे कतरे बचपन के,
चाहिए फिर से सपनों का संसार*

*फिर से चाहिए वो मां से खर्ची,
वो लाल लाल चिप्स,वो चूरन,वो मोटा मरुंडा दमदार*

*फिर से चाहिए वो मिठास आमों की,जो पापा भर भर लाते थे पेटी बेशुमार*

*फिर से चाहिए वो मां का बारिश में भी रोटी बनाना
वो करके खाट खड़ी जैसे छत बनाना
वो मां का सतत कर्म का शंखनाद बजाना
फिर भी पेशानी पर कोई शिकन ना लाना, मां कुदरत का धरा पर अनमोल उपहार

फिर से चाहिए वो मौसी का हमारे घर में आना*
वो मामा के आने पर मां का मुस्काना
वो बड़े प्रेम से छोटे भाई को भोजन करवाना

*वो मां का भाई के लिए अधिक लगाव सा, निभाना मां का श्रेष्ठ किरदार*
*वो मां का जिम्मेदारियों का ओढ़ना दुशाला और वे सुस्त से पड़े रहते थे जो अधिकार*

*फिर से चाहिए वो होली का हुल्लड़
वो दीवाली की सफाई वो तीज के पापड,सवाली वो लपट कढ़ी की जायकेदार*

*फिर से चाहिए वो सच्ची खुशी जिसके बेल्टेक टीवी और एवन साइकिल आने से हुए थे दीदार*

*फिर से चाहिए वो पापा का ऑफिस जाना,फिर दोपहर को घर आना,वो ताश की बाजी,वो तीन की दाल तीन की भुजिया कहते मुस्कुराते पापा के प्रेम भरे दीदार*

*फिर से चाहिए मुझे वो ममता भरा सा स्पर्श मां का,वो बहनों का सानिध्य, वो भाइयों का अपनापन,वो पड़ोसियों का आना,वो मां का तंदूर की रोटी लगाना भरी दोपहर में,फिर भी माथे पर न कोई शिकन,कभी नातों में ना थी कोई दरार
*किसी अभाव का प्रभाव ना था,
जिजीविषा करती थी चेतना का श्रृंगार*

फिर से चाहिए वो आंगन सहजता का,
वो वात्सल्य मां का,वो अनुभूतियों का गहन विस्तार

*फिर से चाहिए वो ताई खतिन्न का आना,वो मां का दीवाली पर भैसों की  रंगबिरंगी गल पट्टी बनाना,वो 
दीवाली पर खील खिलौने लेने जाना बाजार*

फिर से चाहिए जो खो गए हैं दुनिया की भीड़ में,स्नेह था जिनसे सबको अपार


फिर से चाहिए वो कागज की किश्ती,वो बारिश का पानी,वो मां के हाथ की चूल्हे की रोटी,वो गोभी की सब्जी, वो बाजरे की खिचड़ी,वो बैंगन का भुर्ता,वो दीवाली की सफाई,वो होली का पूजन,वो पढ़ने की चिंता,वो ट्रेन की सीटी,वो मां का रोज भिंडी बनाना,
वो हौले से हाथ पकड़ भीतर ले जाना,
वो प्यार भरे से तोहफे दिखाना,वो स्वाद से परांठे बनाना,वो पापा की मिस्सी सी रोटी बनाना,वो ऊपर से लहुसन का छौंक लगाना,वो पापा से लड़ना,वो फिर मान जाना,वो उनसे हाला छोड़ने की करना गुहार
फिर से चाहिए वो बचपन की बातें,
वो झूठा सा लड़ना,वो कभी प्रेम कभी तकरार।।

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...