*पूरे सप्ताह मन में रहता है एक इंतजार*
*कर्म ही असली परिचय पत्र हैं व्यक्ति का,
वरना एक ही नाम के व्यक्ति होते हैं हजार*
मात्र दीवारें ही नहीं आते रंगने ये रंगरेज हमारे,
रंग देते हैं दिल सच में बेशुमार
*मानो चाहे या ना मानो
यहां चेतना करती है कर्मों का श्रृंगार*
कर्म बन जाता है यहां मित्र आनंद का,कोई तनाव का नहीं होता शिकार
स्वेच्छा से आते हैं यहां ये रंगरेज
बाध्यता का नहीं यहां कोई प्रकार
*मन प्रफुल्लित,तन आनंदित
यही इनके परिचय का आधार*
*नित नित इनकी कला का
हो रहा यहां परिष्कार*
*मातृभूमि से उन्हें प्रेम है
सपने करने आते हैं साकार*
*जोश जज्बा और जुनून*
हर चित में है बरकरार
*संकल्प से सिद्धि तक
नहीं रुकते ये एक भी बार*
*अलग परिवेश,अलग परवरिश*
पर यहां एकता का संसार
*मूल में उनके जनकल्याण है*
शहर की भलाई सोच का आधार
*न रुकते हैं कभी, न थकते हैं कभी*
जैसे सब जानते हों *गीता का सार*
*एक एक करके बना काफिला
संगठन में शक्ति होती है अपार*
अंतर्निहित शक्तियों को बाहर लाने
का प्लेटफॉर्म है ये,
*सच में प्रतिभा का संसार*
*लम्हा लम्हा हो रहा है
यहां कला और सोच में सुधार, निखार, परिष्कार
नेकी करने में देरी कैसी???
आ जाओ ना आप भी इस रविवार
सच्ची खुशी रहती है यहां उन्मुक्त भाव से,
*आओ आ कर कर लो दीदार*
स्नेह प्रेमचंद
Comments
Post a Comment