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Happy father's day(( thought by Sneh premchand))

बेहतरीन से बेहतरीन करने की चाह में जो सारा जीवन बिताता है,
पिता ही होती है वो शख्शियत,
जो सदा मुस्कान बच्चों के लबों पर लाता है।

पिता है तो चिंता फिर किस बात की??
मेरी समझ को तो यही समझ में आता है।।

बच्चों को अपने से आगे बढ़ते हुए देख कर जो मुस्कुराता है।।
हर 🌞 सन शैडो में जो साथ निभाता है।।
ऐसा जग में होता सिर्फ और सिर्फ पिता का नाता है।।
*सुधार और निखार की हर संभावित संभावना को टटोलना जिसे बखूबी आता है*
कोई नहीं मेरे प्यारे बंधु वो सिर्फ पिता का नाता है।।

*पिता है तो बाजार का हर खिलौना अपना है*
*पिता है तो पूरा होता है सपना है*
 *पिता है तो जागते और मुस्कुराते रहते हैं अधिकार*
*पिता है तो महफूज सा लगता है ये पूरा संसार*

*बेशक पिता को करना नहीं आता 
इजहार
पर जग के इस मेले में,
पिता से अधिक कोई कर ही नहीं सकता है प्यार*

*आजीवन बच्चों की थाली में सजी रहे रोटी,
यही हर पिता की सोच का दृढ़ आधार*
ऊपर से कठोर भीतर से नर्म है पिता
*पिता ही शिक्षा पिता ही संस्कार*

संयम,मेहनत,चिंतन,अधिकार है पिता
घर की रीढ है पिता,सच में साची प्रीत है पिता

आस है पिता,विश्वाश है पिता
सच में सब से खास है पिता

*बच्चों की हर उपलब्धि के पीछे
बेशक पिता के अथक और सतत प्रयास पृष्ठभूमि में करते हों वास*

पर बच्चों को सदा आगे रखना चाहता है पिता,खास नहीं,वो जीवन में है अति अति खास

*मंदिर मस्जिद गिरिजाघर में
क्यों भटक रहा इंसान*
*मात पिता का सानिध्य ही है
सारे तीर्थ सारे धाम*

जिंदगी का परिचय अनुभूतियों से करवाता है पिता
हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध करवाता है पिता
हर समस्या का समाधान बन जाता है पिता
हर घाव को अपने प्रेम से सहलाता है पिता
संवाद और संबोधन बेशक सुस्ता जाएं पिता के,
पर संबंध दिनोदिन गहराता है
वो गले भले ही ना लगाए बच्चों को,
पर दिल में सदा के लिए बसाता है।।
मां पर तो बहुत चलती है लेखनी,
पर पिता पर आकर लेखक भी ढीला पड़ जाता है।।
पर ये क्यों भूल जाते हैं हम
मां का रौब और रुतबा पिता से ही मुस्कुराता है।।
मुझे तो पिता के चेहरे में ईश्वर का अक्स नजर आता है।।




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