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देखो आई घड़ी भात की( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)?

देखो आई घड़ी भात की,
मां जाए खड़े मेरे द्वार
मेरे नैना सजल हो गए,
*देख पीहर का परिवार*
हे री! जल्दी से जाओ री,
कोई लाओ सुमन का हार

बड़ी शुभ बेला है ये,
है सारा समा खुशगवार
कित ठाऊं बिठाऊं मैं??
बड़े प्यारे हैं इनके दीदार
देखो आई घड़ी भात की,
मां जाए खड़े मेरे द्वार।।
भाभी संग में आई हैं,
जैसे सावन में आए फुहार।।

मेरे बाबुल,मेरी मां भी है
*जैसे ईश्वर का हों अवतार*
हो गई आज पूर्ण सी मैं,
*देख प्यारा सा ये परिवार*
देखो आई घड़ी भात की,
मां जाए खड़े मेरे द्वार

 मेरे चित में सुमन से खिले
जैसे बागों में आई बहार___२
आज उड़ उड़ सी जाऊं मैं,
और कर लूं सोलह श्रृंगार____२

आए सज के भतीजे भी हैं
करूं स्वागत मैं बार बार
मेरी प्यारी भतीजी भी है
जैसे हो कोई शीतल फुहार
देखो आई घड़ी भात की
मां जाए खड़े मेरे द्वार

रोली चावल लाओ री,
करूं मैं तिलक का श्रृंगार
मैने चोक पुराया है
और मंगल गाया है
सब मिल जुल गाओ री,
मां जाए खड़े मेरे द्वार

मोहे चुनरी उढाओ री,
मेरे नेहर की ठंडी फुहार
मोहे टीका लगाओ री,
चित में उमड़ा है कितना प्यार__२

आज सबकी दुआएं मिलें,
यही सबसे बड़ा उपहार
हाथ सिर पे हो बाबुल का,
मां के साए में ममता अपार
देखो आई घड़ी भात की,
मां जाए खड़े मेरे द्वार




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