अपनी जाने कितनी इच्छाएं दबा कर,हमारी हर खुशी को कर पूरा,
मुस्कान हमारे लबों पर लाती है।।
आज बरस 59 का हुआ है तूं,
हर मां अपने जिगर के टुकड़े को
शतक लगवाना चाहती है।।
भूख अगर हमे लगती है तो
वो तत्क्ष्ण रोटी बन जाती है।।
और कोई नही मेरे दोस्तों,
*वही तो माँ कहलाती है*
हमारी कितनी ही कमियों को कर नज़रंदाज़
हमे अपने चित्त में बसाती है।।
शक्ल देख हरारत पहचानने वाली मां हर संज्ञा,सर्वनाम,विशेषण का बोध करवाती है।।।
समय बेशक बीता जाए,
पर वो याद आ ही जाती है,
और अधिक कुछ नही कहना,
बस उसके न होने से सहजता जीवन से दामन चुराती है।।
ईश्वर का पर्याय है माँ,
अपनी जान पर खेल कर हमें जग में लाती है।।
*कोई और नहीं,कोई छोर नहीं
सच में मां जैसे कोई और नहीं*
हौले हौले समझ में आती है।।
बच्चे संग मां भी होती है अधिकारी बधाई की,
मां तो मुझे ईश्वर के समकक्ष नजर आती है।।
मुझे इतना आता है समझ में,
मां सच में जग से जा कर भी कहीं नहीं जाती है।।
वो जिंदा रहती है सदा हमारे अचार,व्यवहार में
मां जैसा नहीं होगा कोई दूजा,
देख लो चाहे पूरे संसार में।।
कहती नहीं वो कर देती है
सच मां जग में सबसे मीठी लोरी गाती है।।
मां होती है जब तक,ये धरा जन्नत बन जाती है।।
अपने सामर्थ्य से अधिक किया तेरे लिए तो,
सच में मां याद बहुत ही आती है।।
मां के ऋण से उऋण नहीं हो सकते हम,मां तो ईश्वर का पर्याय बन जाती है।।
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