कुंती द्वारा कर्ण का त्याग न्यायोचित नही था,जिस प्रेम और सम्मान का कर्ण अधिकारी था,वो उसे नही मिला,उसे क्या मिला?सूतपुत्र होने का दंश,उच्च कुल में जन्म लेने के बाद भी जात पात का नासूर उसे खा गया,एकलव्य अर्जुन के सामान धनुर्धर था,परंतु द्रोण ने उसके दाहिने हाथ का अँगूठा ही गुरुदक्षिणा में मांग लिया,क्या यह न्यायोचित था?नही,अगर कर्ण का त्याग कुंती ने न किया होता,तो इतिहास की धारा ही बदल गयी होती,भरी सभा में पांचाली का चीर हरण हुआ,पूरी सभा मौन रही,क्या यह सही था?पावन जनकनंदिनी की अग्निपरीक्षा ली गयी,गर्भावस्था में उसको जंगल भेज दिया गया,क्या यह सही था?इतिहास में जाने कितने उदहारण हैं ,जब गलत हुआ ,और सब खामोश रहे,फिर ये तो कलयुग है,अब कोन बोलेगा?
कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...
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