Skip to main content

प्राणायाम के लाभ(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

**प्राणायाम के लाभ**

*वात पित्त कफ त्रिदोषों का
 होता है शमन,
समस्त उदर रोग हो जाते हैं दूर*

*पाचन तंत्र पूर्ण स्वस्थ हो जाता है,
दमकता है व्यक्तित्व जैसे कोहिनूर*

*ह्रदय,फेफड़े,मस्तिष्क संबंधी भाग जाते हैं सारे के सारे ही रोग*
*बॉडी,माइंड एंड सोल की पूर्ण शुद्धि करता है जग में सिर्फ ये योग*

*रोग प्रतिरोधक क्षमता का हो जाता है अत्यधिक विकास*

*इतने लाभ हैं प्राणायाम में,
सच में खास नहीं हैं 
ये अति अति खास*

*आभा, ओज,तेज और शांति
 फिर खुद ही आ जाती है
अलग ही हो जाता है औरा,
*मुखमंडल के आभामंडल की 
अलग ही छवि नजर आती है*

*वंशानुगत मधुमेह और ह्रदय रोग से बच सकता है इंसान*
ब*स हो उसे प्राणायाम की शक्ति की पहचान*

*न होंगे सफेद, न झड़ेंगे बाल*
*न चेहरे पर पड़ेगी झुरियां, 
न लटकेगी खाल*

*नेत्र ज्योति भी लंबी आयु तक रहेगी बरकरार*
*स्मृति दौर्बल्य से भी हो जाएगा बचाव,
लंबी आयु का मिलेगा उपहार*

*बुढ़ापा भी नहीं देगा दस्तक  जिंदगी की चौखट पर,
एक नहीं प्राणायाम के लाभ बेशुमार*

*एक नहीं अनेक बीमारियों से मिलेगा छुटकारा,
आओ जाने इस फेरहिस्त में है किस किस का नाम??
*योग भगाए रोग*
*तन,मन,आत्मा की 
शुद्धिकरण का करता है काम*

*मोटापा,मधुमेह,कोलेस्ट्रॉल, गैस, कब्ज,अमलपित,श्वास रोग*

*इन सब जो दूर भगा सकता है सिर्फ और सिर्फ ये योग*

*किडनी रोग,एलर्जी,माइग्रेन और रक्तचाप*
आया जो शरण योग की,पूरी निष्ठा से,दूर हुए उसके संताप*

*नर नारी के समस्त यौन रोग,सामान्य रोगों से कैंसर तक सभी साध्य असाध्य रोग दूर हो जाते हैं*
*चक्रों के शोधन, भेदन और जागरण द्वारा आध्यात्मिक शक्ति हम पाते हैं*

*कुंडलिनी जागरण द्वारा धरा पर ही ईश्वर के दर्शन हम पाते हैं*
*चित शांत,स्थिर, प्रसन्न,उत्साहित सा कर जाते हैं*

*मलिन मनों से हट जाते हैं सब धुंध कुहासे,नष्ट ही जाते हैं सारे अवसाद विषाद*
*ध्यान स्वत: लगने लगता है,रहने लगता है सब याद*

स्थूल और सूक्ष्म देह के नष्ट हो जाते हैं समस्त रोग काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार

नष्ट हो जाते हैं विजातीय तत्व,, टाक्सिन शरीरगत समस्त विकार

*सबसे बड़ा लाभ तो ये है,
समाप्त हो जाते हैं नकारात्मक विचार*
*करता है अभ्यास जो प्राणायाम का
भर जाता है चिंतन और उत्साह से,
चित में रहने लगते हैं सकारात्मक विचार*

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...