*मत सोचना वो कुछ लेने आयी हैं,
वो तो अपना हिस्सा भी कर देती है नाम तुम्हारे*
*बचपन के कुछ पल चुराने आई हैं वो अपने बाबुल के द्वारे*
हो अभी भी उनकी ज़िंदगी में कुछ खास तुम,तुम्हें ये बताने आई हैं,
वस्त्र ,आभूषण की उनके मन में नही होती कभी कोई अभिलाषा,इस पावन पर्व से समझा जाती हैं ,वे प्रेम की परिभाषा,रखे ध्यान माँ बाप का हर भाई,यही हर बहन का प्रेम उपहार,वो तो उलझी है रिश्तों के नए भंवर में,पर हर भाई तो अपनी ज़िम्मेदारी कर सकता है स्वीकार
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