Skip to main content

क्या क्या सीखें कान्हा से हम???(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा, आर्ट बाय बिटिया ऐना))




क्या क्या सीखें हम कान्हा से????

प्रेम,ज्ञान,राजनीति,न्यायप्रियता,
पथ प्रदर्शन और रिश्तेदारी
सब सिखाया है कान्हा चरित्र ने,
सीखने की है अब हमारी बारी

*सच्चा प्रेम क्या होता है,
ये कान्हा से सीखे हम*
*राधा कान्हा की प्रेम कहानी,
जितनी सोचो उतनी कम*

*अपना भाग्य आप बनाने की कला,ये भी कृष्ण ने सिखाया है*
*कर्म ही जीवन है*
तान को बड़े प्रेम से गाया है*

* कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन*
कर्म करो,पर फल की इच्छा न करो,गीता में कान्हा ने समझाया है*
*ज़रूरी कर्म को करना ही है,
इस धुन को नगमा बनाया है*

*प्रत्यक्ष नहीं तो परोक्ष लाभ होते हैं
हर कर्म के,किसी को आज
किसी को कल,पर समझ में अवश्य आया है*
*घने तमस में उजियारे से कान्हा* जग भर में लोगों ने अपना आदर्श बनाया है*

क्या महत्व है *संयम* का जीवन में,कान्हा ने बखूबी समझाया है

पहले अपशब्द पर ही सर काटने की शक्ति होने के बाद भी 99 बार   अपशब्द सुनने का सामर्थ्य रख, अंत में बुराई शमन करने वाले कान्हा का जीवन चरित्र सबको भाया है

सुदर्शन और मुरली दोनों संग कान्हा ने जीवन बिताया है
कोमल और कठोर के सामंजस्य को दोनों संग समझाया है


*रिश्तों को कान्हा ने बड़ी सहजता से निभाया है*
कभी पुत्र, कभी मित्र,कभी सारथी,कभी गुरु,कभी राजा,कभी प्रेमी हर किरदार बखूबी निभाया है

हुई है जब जब हानि धर्म की,
सुदर्शन चक्र भी चलाया है
सजी रही मधुर बांसुरी लबों पर,
सिर पर मोर मुकुट सजाया है

निर्धन सुदामा के पोहे खा कर,
धनी निर्धन का भेद मिटाया है
द्वारका का वैभव होने पर भी
निर्धन मित्र को गले लगाया है।।

*विषम परिस्थितियों में भी ना छोड़ा सहजता और उल्लास का दामन,
ये कितना खास पाठ पढ़ाया है*

मृत्यु फन पर होने के बाद भी किया नृत्य,हर चुनौती का सामना करना सिखाया है।।

*अहंकार ना हो मन में किसी के,
ये सबसे अच्छा पाठ पढ़ाया है*
*सर्व सामर्थ्य होने पर भी  बने सारथी* कितना निर्मल उनका साया है

*जन्मे कहीं पले कहीं बसे कहीं
पर सर्वत्र दिलों में अपना अक्स बसाया है*
*क्या क्या नहीं छूटा कान्हा से
पर कर्ण की भांति अपने भाग्य पर इल्जाम नहीं लगाया है*

*हर चुनौती का डट कर किया सामना,युगपुरुष होने का फर्ज निभाया है*

*मात पिता छूटे,बाल सखा छूटे,छूटी राधा प्यारी*
*हर बार बिखरे नहीं निखरते गए सांवरे,जाने ये कायनात है सारी*

*भाग्य से कर्म होता है बड़ा,
पूरे ब्रह्मांड को समझाया है*

*अधर्म और असत्य को कभी नहीं सहना,कंसवध,जयदर्थ वध,गीता ज्ञान से यही समझाया है*
*होती है जब जब हानि धर्म की,
बांसुरी वाले हाथों ने सुदर्शन चक्र भी चलाया है*
पूरा ही जीवन माधव का जाने क्या क्या सिखाता है!?
ये तो अब हम पर है निर्भर,
हमे क्या क्या सीखना आता है????

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व

बुआ भतीजी