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ममता का सागर(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*माँ एक ऐसी गागर है जिसमे समाया ममता का सागर है*

*माँ एक ऐसी बांसुरी है जिससे सदा प्रेमधुन बजती है*

*पर्व,तीज,त्योहार,उत्सव,
उल्लास है मां*

*माँ एक ऐसा साज है जिसकी सिर्फ और सिर्फ ममता आवाज़ है*

*मां अनहद नाद है शिक्षा और संस्कारों का
सौ बात की एक बात है मां सागर है सुविचारों का*

*माँ ममता का वो ईंधन है जो ताउम्र जलता है*

*माँ एक सुखद आभास है,आशा है,विश्वास है*

*माँ वो तरनुम है जो अनुराग भरे दिल से ही निकलती है*

*माँ करुणा का पर्याय है,सबसे अच्छी राय है,चाहे कितना होले परेशान,मुख से कभी नही निकलती हाय है*

*माँ वो मटका है जिसको कुम्हार ने केवल स्नेह की माटी से बना दिया,जो औलाद के जल से सदा सौंधी सौंधी ममता भरी महकती रहती है*

*माँ जग से चली जाती है,पर दिल से कभी नही जाती*
*शक्ल देख हरारत पहचान लेती है मां*
* बिन कहे ही हाल ए दिल जान लेती है मां*

*रामायण का राघव है मां*
*गीता का माधव है मां*

*माँ को बना कर खुदा आज तक अपनी रचना पर गौरव महसूस करते हैं*

*माँ तपते रेगिस्तान में शीतल फुहार है*

*माँ जीत में है तो माँ हार में भी संग है*

*माँ हौसला है,आशा है,शिक्षा है,संस्कार है,प्यार है,प्रेरणा है*

क्या नही है माँ?????????

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