हसरतभरी निगाहों ने जब देखा माँ की ओर
सच मे माँ लगती थी जैसे हो कोई खिली सी भोर।।
सपने देखेगी अपनी आँखों से हमारे लिये,
उन्हें पूरा करेगी अपनी मेहनत से हमारे लिए,
बनाया होगा जब माँ को खुद ने
देख कर अपनी ही रचना,हो गया होगा भाव विभोर।।
चलो मन वृन्दावन की ओर
प्रेम का रस जहाँ छलके है,
कृष्ण नाम से भोर।।
माँ यशोदा ही देख कान्हा की लीलाएँ
कहती थी प्रेम से नन्द किशोर।।।
मैं नही खायो माखन मईया
सच नहीं मैं हूँ माखनचोर।
माँ बच्चों की ऐसी ही कहानियां
सुन द्रवित हो जाते हैं हिवड़े कठोर।।
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