*कभी हकीकत कभी ये सपना
सच मे ही नही रहा कोई अपना*
*ज़िन्दगी का अनुभूतियों से परिचय करने वाली*
*मैं हूँ न* के मधुर सम्बोधन से गोद मे सुलाने वाली*
*भोर की मीठी हलचल माँ*
*दोपहर की सुकूनभरी सी निंदिया माँ*
*साँझ की मुलाकातों की मीठी दास्तान सी माँ*
*रात को शीतल चाँद सी अपनी आगोश में हर चिंता को समाने वाली माँ*
*माँ के बिन जीना तो पडता है
पर हर मोड़ पर यादों के झरोखों से झांकने लगती है माँ*
*धड़धड़ाती ट्रेन से तेरे अस्तित्व के आगे थरथराते पुल सा वजूद रहा मेरा,सच में भाग्य से नहीं,सौभाग्य से मिलती है ऐसी मां*
कभी हकीकत,कभी सपना
सी लगती है माँ
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