श्रद्धा औऱ तर्क
मैं श्रृद्धा हूँ अंधविश्वास नही,
हम दोनों में फर्क है बहुत भारी।
अब तुम ही समझो,जानो क्या फर्क है हमारा
लगा दो अपनी शक्ति सारी।।
काश मुझ को जानते तुम,फिर इतने नही करते सवाल।
मेरा सच्चा परिचय पाकर,थम जाते तुम्हारे सारे बवाल।
मैं हूँ एक ऐसा उजाला,जो मिटा देता है सारा अँधेरा।
मन की किवाड़ खोल देती हूं मैं, आता है फिर सुंदर सवेरा।।
सुन श्रद्धा की बातें तर्क ने,फिर से अपना तर्क लगाया।
पर क्या है "श्रद्धा',क्या कहना चाहती है श्रद्धा,
आजीवन वो समझ न पाया।
राह दोनों की अलग अलग थी,
रास्ता दोनो ने अपना अपना अपनाया।
नहीं समझ सकते हम दोनों एक दूजे को,
बेशक श्रद्धा ने तर्क को हो कितना समझाया।।
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