*सदा मुस्कुराती हुई*
*अंतस में जाने क्या क्या छिपाती हुई*
*रेगिस्तान को बसंत सा बनाती हुई*
*ज्ञान गंगा चित में बसाती हुई*
*कथनी नहीं करनी अम्ल में लाती हुई*
*हर रिश्ते को स्नेह जल से सींच,अपना बनाती हुई*
*हर किरदार बखूबी निभाती हुई*
कब एक डिप्लोमेट की तरह हौले से जिंदगी के रंगमंच से निकल गई, पता ही नहीं चला
पर तेरे जाने के अभाव के प्रभाव का बहुत अच्छे से पता चल रहा है।।
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