Skip to main content

सबके बस की बात नहीं(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

*दर्द उधारे लेना जग में*
सबके बस की बात नहीं

*करुणा भरा हो चित व्यक्ति का*
सबके बस की बात नहीं

*दिल जीत ले जो सबका*
सबके बस की बात नहीं

*कोई चुभती बात ना कहे किसी को*
सबके बस की बात नहीं

*मन के घोड़ों की लगाम कसना*
सबके बस की बात नहीं

 *मधुर वाणी संग हो मधुर व्यवहार*
सबके बस की बात नहीं

*कुछ करना दरगुजर कुछ करना दरगुजार*
सबके बस की बात नहीं

*सपने वे होते हैं जो हमे सोने नहीं देते*
समझना सबके बस की बात नहीं

*दिल दिमाग का हो सही तालमेल*
सबके बस की बात नहीं

*नयनों की भाषा पढ़ना*
सबके बस की बात नहीं

*फल मिले या ना मिले पर कर्म करते रहना*
सबके बस की बात नहीं

*खामोशी की जुबान समझना*
सबके बस की बात नहीं

*सोच कर्म परिणाम की त्रिवेणी बहाना*
सबके बस की बात नहीं

*छोटे बड़े हमउम्र सबसे तालमेल होना*
सबके बस की बात नहीं

*संकल्प का मिलन हो जाए सिद्धि से*
सबके बस की बात नहीं

*बेगानाें को भी अपना बना लेना*
सबके बस की बात नहीं

*उपलब्ध सीमित संसाधनों में बेहतरीन कर जाना*
सबके बस की बात नहीं

*मन में कोई राग ना हो,कोई द्वेष ना हो,कोई अहंकार ना हो,कोई विकार ना हो*
ये सबके बस की बात नहीं

*सहजता का दामन कभी ना छोड़ें*
सबके बस की बात नहीं

*भौतिक संसाधनों से अधिक लगाव ना करना*
सबके बस की बात नहीं

*खुद मझधार में हो कर भी साहिल का पता बताना*
सबके बस की बात नहीं

*किसी बाधा आने पर बिखरना नहीं निखरना*
सबके बस की बात नहीं

उपरोक्त सारी बातें तेरे बस में थी मां जाई!
उच्चारण में नहीं आचरण में रहा विश्वाश तेरा,
थी तूं ऐसे जैसे तन संग हो परछाई

Comments

Popular posts from this blog

वही मित्र है((विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

कह सकें हम जिनसे बातें दिल की, वही मित्र है। जो हमारे गुण और अवगुण दोनों से ही परिचित होते हैं, वही मित्र हैं। जहां औपचारिकता की कोई जरूरत नहीं होती,वहां मित्र हैं।। जाति, धर्म, रंगभेद, प्रांत, शहर,देश,आयु,हर सरहद से जो पार खड़े हैं वही मित्र हैं।। *कुछ कर दरगुजर कुछ कर दरकिनार* यही होता है सच्ची मित्रता का आधार।। मान है मित्रता,और है मनुहार। स्नेह है मित्रता,और है सच्चा दुलार। नाता नहीं बेशक ये खून का, पर है मित्रता अपनेपन का सार।। छोटी छोटी बातों का मित्र कभी बुरा नहीं मानते। क्योंकि कैसा है मित्र उनका, ये बखूबी हैं जानते।। मित्रता जरूरी नहीं एक जैसे व्यक्तित्व के लोगों में ही हो, कान्हा और सुदामा की मित्रता इसका सटीक उदाहरण है। राम और सुग्रीव की मित्रता भी विचारणीय है।। हर भाव जिससे हम साझा कर सकें और मन यह ना सोचें कि यह बताने से मित्र क्या सोचेगा?? वही मित्र है।। बाज़ औकात, मित्र हमारे भविष्य के बारे में भी हम से बेहतर जान लेते हैं। सबसे पहली मित्र,सबसे प्यारी मित्र मां होती है,किसी भी सच्चे और गहरे नाते की पहली शर्त मित्र होना है।। मित्र मजाक ज़रूर करते हैं,परंतु कटाक...

बुआ भतीजी

सकल पदार्थ हैं जग माहि, करमहीन नर पावत माहि।।,(thought by Sneh premchand)

सकल पदारथ हैं जग मांहि,कर्महीन नर पावत नाहि।। स--ब कुछ है इस जग में,कर्मों के चश्मे से कर लो दीदार। क--ल कभी नही आता जीवन में, आज अभी से कर्म करना करो स्वीकार। ल--गता सबको अच्छा इस जग में करना आराम है। प--र क्या मिलता है कर्महीनता से,अकर्मण्यता एक झूठा विश्राम है। दा--ता देना हमको ऐसी शक्ति, र--म जाए कर्म नस नस मे हमारी,हों हमको हिम्मत के दीदार। थ-कें न कभी,रुके न कभी,हो दाता के शुक्रगुजार। हैं--बुलंद हौंसले,फिर क्या डरना किसी भी आंधी से, ज--नम नही होता ज़िन्दगी में बार बार। ग--रिमा बनी रहती है कर्मठ लोगों की, मा--नासिक बल कर देता है उद्धार। हि--माल्य सी ताकत होती है कर्मठ लोगों में, क--भी हार के नहीं होते हैं दीदार। र--ब भी देता है साथ सदा उन लोगों का, म--रुधर में शीतल जल की आ जाती है फुहार। ही--न भावना नही रहती कर्मठ लोगों में, न--हीं असफलता के उन्हें होते दीदार। न--र,नारी लगते हैं सुंदर श्रम की चादर ओढ़े, र--हमत खुदा की सदैव उनको मिलती है उनको उपहार। पा--लेता है मंज़िल कर्म का राही, व--श में हो जाता है उसके संसार। त--प,तप सोना बनता है ज्यूँ कुंदन, ना--द कर्म के से गुंजित होता है मधुर व...