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मन के भीतर रावण है मन के भीतर राम(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*मन के भीतर रावण है
 मन के भीतर राम*
*किसको जगाते,किसको सुलाते
ये सबके अलग अलग हैं काम*

*सत्यमेव सदा जयते*
राम भगति करो निष्काम
*रघुपति राघव राजा राम*
*रघुपति राघव राजा राम*
सच में घट घट में बसते हैं राम
राम राम राम राम राम राम

*अधर्म पर धर्म की*
*असत्य पर सत्य की* 
विजय ही
विजयदशमी पर्व का मूल
जब तक विजय पाएं ना 
आंतरिक शत्रुओं पर,
हर उपलब्धि हमारी फिजूल 

*रघुपति राघव राजा राम
सबको सन्मति दे भगवान*
सत्य,मर्यादा,विनम्रता,करुणा
ही हैं चारों धाम
*मन के भीतर रावण है
मन के भीतर राम*

काम,क्रोध,लोभ, मद, मोह,अहंकार
ईर्ष्या,वैमनस्य,हिंसक प्रवृत्तियां,छल कपट,मांसाहार,मदिरापान,बुरा व्यवहार
*इन सबसे मुक्त करना ही अपने चित को*
 हो गया समझो दशहरे का त्योहार
*सुख,शांति,स्मृद्धि,अनंत आनंद देगा दस्तक जिंदगी के द्वार*

हर बार मनाते हैं दशहरा,
जलाते हैं रावण को,
पर यह रावण नहीं मर पाता

*ईर्ष्या,द्वेष,झूठ,आडंबर और भ्रष्टाचार
 सबसे रावण का खून का नाता

ये नाता अटूट है युगों युगों से,
जाने सत्य पूरा जहान
मन के भीतर रावण है
मन के भीतर राम

रावण के दस शीश है प्रतीक
दस विकारों के,
हर विकार का निश्चित है परिणाम
मन के भीतर रावण है,
मन के भीतर राम

*अहंकार भी बैठा है युगों से अपना फन फैलाए*
*हिंसा इस रावण की पत्नी है,
कर दी हैं जटिल जिसने जीवन की राहें*
डूबा है जग अहंकार के सागर में,
समस्या का आज तलक नहीं मिला निदान
*मन के भीतर रावण है
मन के भीतर राम*

तामसिक प्रवृत्तियों वाला ये रावण
क्यों जन जन को इतना लुभाता है?

*मदिरापान और मांसाहार को ये
सच में सामान्य बताता है*

कैसा है ये दीर्घायु रावण???
जो प्रेम ना जाने,करुणा ना जाने

धर्म का स्वरूप भी ना पहचाने

विनाश हिंसा भोग चाहे ये पल पल

क्यों अमर होने का पाया है इसने वरदान??
मन के भीतर रावण है
मन के भीतर राम
*जब जब करोगे विचरण अंतर्मन के गलियारों में,
पाओगे एक एक लंका और एक एक रावण छिपा हुआ विकारों में*

मानो कर रहा हो अटहासऔर उपहास,पूछ रहा हो यक्ष प्रश्न

कब तक मारोगे मुझे कब तक जलाओगे???
इस युग में तो श्री राम भी नहीं,
कैसे विजय तुम पाओगे????

एक अर्थ यही समझ में मुझ को आया है
जब तक विजय नहीं पाई विकारों पर,
विजय दशमी कब आया है???

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