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चल चल लेखनी,लिख कुछ ऐसा(( दिल के उद्गार स्नेह जीजी द्वारा))

*चल उठ लेखनी आज फिर लिख दे कुछ ऐसा,
जो सच में बन जाए इतिहास*

*देना शांति उसकी दिव्य दिवंगत आत्मा को,
जो दैहिक रूप से आज नहीं है हमारे पास*

*कब है बदल जाता है था में
हो ही नहीं पाता विश्वास*

*माटी मिल गई माटी में
सबके जग में गिनती के श्वास*

*सच में वो रंगरेज थी ऐसी,
आज भी उसी के रंग में रंगा हुआ है हर अहसास*

*वो सच में ही ऐसी थी जैसे,
तन में होते हैं सबके श्वास*

*भले ही ना हो तन से
वो मध्य हमारे,
पर जिक्र जेहन में सदा रहेगी पास*

*वक्त के हाथों ये कैसे फिसला
लम्हा कोई
बन गई ना भूली जाने वाली दास्तान*

*बहुत छोटा शब्द है मां जाई तेरे लिए महान*

*न रुकी कभी, न थकी कभी
सच में रही तूं ईश्वर का वरदान*
*खुद मझधार में हो कर भी साहिल का पता बताने वाली मुख पर सदा सजी रही मुस्कान*

*कुछ किया दरगुजर,बहुत कुछ किया दरकिनार*
*बखूबी जानती थी वो सफल जीवन का यही आधार*

*न राग न द्वेष न लोभ ना ईर्ष्या
ना मन में कोई अहंकार*
*न गिला ना शिकवा ना रंजिश कोई शिक्षा भाल पर सदा सजा संस्कार*

सच तेरे घर की राह भूल गए थे सारे विकार
निर्मल पावन चित इसका,
शख्शियत इसकी अति दमदार
सोच ये, मुड़ गए मोड़ वे हर बार

*प्रेम सुता !तूं प्रेम राह पर सदा ही चलती रही*
*गुजरते वक्त संग संग निखरती गई*

*बखूबी जानती थी जिम्मेदारी संग ही मिलते हैं अधिकार
दिनोदिन  धड़धड़ाती सी ट्रेन से तेरे व्यक्तित्व में होता रहा परिष्कार*
*दिलजीत होता तो तेरा नाम कितना सही होता,चित में आता है ये विचार*

*जो लम्हे गुजरे संग तेरे,
सच में बन जाते थे खास*
*तूं जहां भी है मिले शांति
तेरी दिव्य दिवंगत आत्मा को,
यही कर रही अरदास*
*आज जन्मदिन पर तेरे फिर से।हुआ तेरे होने का आभास*

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