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चलो ना इस बार(( विचार स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

*चलो ना इस बार दिवाली
बिन पटाखों के मनाते हैं*

*प्रदूषण रहित हो वतन हमारा,
 कुछ ऐसी मुहिम चलाते हैं*

*जो अपव्यय करते हैं आतिशबाजी में,
उसी धन से किसी अंधेरी
झोंपड़ी में उजियारा लाते हैं*

*बाल मजदूरों को किताबें
मुहैया करवाते है*
*और छोटू ना हों मजबूर अब,
उन्हें शिक्षा का मौलिक अधिकार दिलवाते हैं*

*शौक की बजाए जरूरतें पूरी किए जाते हैं
उदास लबों पर मुस्कान की ज्योति जलाते हैं*

*रोटी,कपड़ा और मकान
मयस्सर हो जन जन को,
इसी भाव की ज्योत जलाते हैं*

*मेरी नज़र से दीपावली को सही
मायने में मनाते हैं*

*प्रकाश दीए का नहीं,
अलख ज्ञान की जलाते हैं*

*चलो ना इस बार दीपावली
बिन पटाखों के मनाते हैं*

*चलो ना इस बार शिक्षा के भाल
पर टीका संस्कारों का लगाते हैं*

*गर्द झाड़नी ही है तो
दीवारों संग मन की भी।झाड़ जाते हैं*

*जाले उतारने ही हैं तो
उतारते हैं पूर्वाग्रहों,अहंकार,ईर्ष्या द्वेष के,मन को पावन निर्मल बनाते हैं*

क्या मिलेगा शोर मचा कर,
किन्ही भूखे पेटों की भूख मिटाते हैं।।

*महंगी महंगी लाइटें छोड़ कर,
निर्धन कुम्हार के घर दे दीये 
लाते हैं*

*मुझे तो दीवाली के यही मायने समझ में आते हैं*

Comments

  1. अत्यंत ही सुन्दर कविता...😊
    आओ इस दिवाली जाले उतारते हैं पूर्वाग्रहों ईर्ष्या अहंकार... आदि अवगुणों को हटाकर सभी के साथ खुशहाली से त्योंहार बनाते है

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