*चलो ना इस बार दिवाली
बिन पटाखों के मनाते हैं*
*प्रदूषण रहित हो वतन हमारा,
कुछ ऐसी मुहिम चलाते हैं*
*जो अपव्यय करते हैं आतिशबाजी में,
उसी धन से किसी अंधेरी
झोंपड़ी में उजियारा लाते हैं*
*बाल मजदूरों को किताबें
मुहैया करवाते है*
*और छोटू ना हों मजबूर अब,
उन्हें शिक्षा का मौलिक अधिकार दिलवाते हैं*
*शौक की बजाए जरूरतें पूरी किए जाते हैं
उदास लबों पर मुस्कान की ज्योति जलाते हैं*
*रोटी,कपड़ा और मकान
मयस्सर हो जन जन को,
इसी भाव की ज्योत जलाते हैं*
*मेरी नज़र से दीपावली को सही
मायने में मनाते हैं*
*प्रकाश दीए का नहीं,
अलख ज्ञान की जलाते हैं*
*चलो ना इस बार दीपावली
बिन पटाखों के मनाते हैं*
*चलो ना इस बार शिक्षा के भाल
पर टीका संस्कारों का लगाते हैं*
*गर्द झाड़नी ही है तो
दीवारों संग मन की भी।झाड़ जाते हैं*
*जाले उतारने ही हैं तो
उतारते हैं पूर्वाग्रहों,अहंकार,ईर्ष्या द्वेष के,मन को पावन निर्मल बनाते हैं*
क्या मिलेगा शोर मचा कर,
किन्ही भूखे पेटों की भूख मिटाते हैं।।
*महंगी महंगी लाइटें छोड़ कर,
निर्धन कुम्हार के घर दे दीये
लाते हैं*
*मुझे तो दीवाली के यही मायने समझ में आते हैं*
अत्यंत ही सुन्दर कविता...😊
ReplyDeleteआओ इस दिवाली जाले उतारते हैं पूर्वाग्रहों ईर्ष्या अहंकार... आदि अवगुणों को हटाकर सभी के साथ खुशहाली से त्योंहार बनाते है