मां ने विदा होती बेटी से पूछा
लाडो तेरा कुछ रह तो नहीं गया???
बेटी ने देखा कातर नजरों से मां की ओर,जैसे नयनों से सब कह दिया
मां क्या क्या बताऊं क्या क्या रह गया???
रह गई मेरे बचपन की यादें जहां जिंदगी का परिचय हुआ था अनुभूतियों से,जहां मां की लोरी सुन बोझिल पलकें निंदिया की गोद में बेफिक्र सो जाती थी
रह गई वो चंचलता,वो सहजता,वो
बेबाकपन,वो सखियों संग घंटों बिताना, वो सोलह साल की उम्र रह गई मां,वो तेरा ममता भरा पल पल का साथ रह गया मां,बहुत कुछ रह गया मां
रह गए मेरे वे संजीदा अहसास
जो बाबुल के आंगन में सपनों के रूप में खिले थे
रह गई वो यादें जो पहले दिन तेरा हाथ थाम स्कूल गई थी
रह गया मेरा छोटी छोटी बातों पर रूठना, रह गए मेरे बहुत सारे अधिकार
रह गए मेरे मतभेद,मेरी बहसें,मेरा लाड़ दुलार
रह गया भाई बहन संग बीता बचपन
रह गई वो मस्ती,वो अल्हड़पन,
वो मचलते ख्वाब,वो
उमड़ते अहसास,वो कुछ कर गुजरने की जिद्द,वो मेरे सपनों को हकीकत में बदलने की प्रक्रिया
रह गई मेरी अलमारी,मेरी गुड़िया,मेरी मनमानी,मेरी जिद्द,
मेरी ज्यादतियां,मेरी हसरतों की पूरी की पूरी किताब
क्या क्या गिनवाऊं मां????
फेरहिस्त बहुत लंबी है मां
क्षमा करना गिनवा नहीं पाऊंगी
बेटी का जवाब
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