जिंदगी के एक मोड़ पर प्रेम और मोह दोनों मिल जाते हैं
करते हैं कुछ ऐसी बातें,जो हमे दोनों के मायने समझाते हैं
मोह ने अपना परिचय दिया कुछ ऐसा
शब्दों के आईने में अक्स कुछ ऐसे नजर आते हैं
मोह मोह के धागों का उलझा उलझा सा है ताना बाना,जहां सहजता नहीं,स्नेह और स्पेस नहीं,एक जबरन की आसक्ति है,जहां समर्पण नहीं,एकाधिकार की लालसा है,क्रिया की प्रतिक्रिया की अपेक्षाएं हैं,चाहत तो है मगर भाव गहरे नहीं, मोह तो एक कुआं है, तालाब है प्रेम जैसा अनंत सागर नहीं,मोहग्रस्त व्यक्ति को जब एक नजर आता है फिर वो सारा संसार भूल जाता है,उसका नजरिया पूर्वाग्रह से ग्रस्त होता है,सीमा में बंधा स्नेह मोह है,मोह संकुचित है,
प्रेम विस्तृत
मोह सम्मोहन है प्रेम सुखद सम्पूर्ण अहसास
मोह प्रयास है प्रेम प्रभाव
मोह बंधन है प्रेम विस्तार
मोह अक्सर अहम की ढपली बजाता है प्रेम व्यामंका अनहद नाद
मोह कृत्रिम है मोह उत्तेजना है
प्रेम प्राकृतिक,सहज,सरल,मधुर,
आत्मिक
*प्रेम तो वह सागर है जिसमे पूरा
ब्रह्माण्ड समाहित हो जाता है,प्रेम प्राप्ति नहीं प्रेम अहसास है, प्रेम समर्पण है प्रेम दोस्ती है प्रेम की एक शर्त है सम्मान और स्पेस
*राधा कान्हा का प्रेम प्रेम का सर्वोच्च शिखर है*
प्रेमी जन सबको प्रेम करता है उसके प्रेम का सतत विस्तार होता रहता है
मोह अस्थाई चमक है
प्रेम तो पारस है जो पत्थर को भी सोना बना देता है
प्रेम में पड़ा व्यक्ति सबको अपना खास लगता है
मोह फूल है तो प्रेम महक है
मोह साधन है प्रेम आत्मा को सच्ची साधना
मोह शर्त है प्रेम सम्मान और समर्पण
मोह तन है प्रेम आत्मा
मोह दीया है प्रेम बाती
मोह की सरहद और दायरे हैं प्रेम अथाह अनंत असीम है करना ही है तो प्रेम करो मोह नहीं
Comments
Post a Comment