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रोम रोम में बसते राम(( स्तुति स्नेह प्रेमचंद द्वारा)

* रोम रोम में बसते राम
रघुपति राघव राजा राम*
कण कण में हर क्षण में राम
अनुभूति अभिव्यक्ति में राम

*राम राम हे सिमर मन
राम राम श्री राम जय राजा राम
आ जाते हैं बन घणी घनी सी छाया
होता है जब जीवन में घाम

*राम  राम श्री राम भज
राम राम हरि नाम*

*नहीं मात्र हनुमान के,
सबके चित में बसते राम*

सांस सांस में सिमरु राम
राम ही तीर्थ,राम ही धाम
लागी राम की लागी जब
उजली भोर फिर निखरी शाम

*राम रात्रि,राम दिवस,
राम भोर शाम*
*राम नाम लेने से ही
हो जाते सब तीर्थ धाम*

*राम अनुभूति राम अभिव्यक्ति
रोम रोम में बसते राम*
*राम से मर्यादा पुरषोत्तम की कहानी
सिखाती राम भगति करो निष्काम*

*राम राम हे सिमर मन
राम राम श्री राम*

*संपति से मूल्यवान हैं नाते
निज चरित्र से समझाते राम*

*प्राण जाएं पर वचन न जाएं
रग रग में बसते हैं राम*

इंदु की ज्योत्सना में राम,राम दिनकर के सवेरों में
हनुमान के सीने में राम,राम शबरी के बेरों में

जटायु की श्रद्धा में राम
राम अहिल्या के इंतजार में
ज़र्रे ज़र्रे में राम,
राम हर सोच विचार में

*गुरु वशिष्ठ के शिष्य राम
दशरथ के दुलारे प्यारे राम*

*माताओं के दिल की धड़कन राम

*हनुमान के अराध्य राम*

*अहिल्या के तारणहार राम*

*भाइयों की प्रेरणा हैं राम*

*गण तंत्र के दिल में राम*

*सुग्रीव के मित्र हैं राम*

*सीता के परम प्रिय हैं राम*

*मर्यादा के पर्याय हैं राम"

*सागर से विनती करते राम*

*धर्म के सच्चे ज्ञाता राम*

*नारी अस्मिता के संरक्षक राम*

*तमस से आलोक की ओर ले जाते राम*

*अधर्म पर धर्म की विजय दिलाते राम*

*सच रोम रोम में बसते राम*
*राम राम श्री राम भज
राम राम हरि नाम*

आज अभी इसी पल से जप लो
जाने कब आ जाए जीवन की शाम

*आओ दीप जलाएं घर घर में,
फिर से अयोध्या लौटे हैं राम*
फिर मावस लग रही है पूनम
उजली भोर और निखरी शाम



Comments

  1. बहुत ही सुन्दर कविता 👏👏...राम राम

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