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वो कैसे सब कुछ कर लेती थी(( आश्चर्य भाव स्नेह प्रेमचंद द्वारा))

वो कैसे सब कुछ कर लेती थी??
थोड़े से उपलब्ध संसाधनो में हमे सब कुछ दे देती थी!!!

पर्व,उत्सव,या फिर कोई भी उल्लास'
बना देती थी वो कितना खास!!!

कर्मठता का पर्याय थी,जीवन मे सबसे सच्ची राय थी।।

कितने पापड़ बेल कर भी सहजता से मुस्काती थी
वो कैसे सब कुछ कर जाती थी !!!

गर पी एच डी करनी पड़े उसके बारे में हर कोई चक्कर मे पड़ जायेगा।
डाटा कुछ औऱ कहेगा,परिणाम कुछ और ही आएगा।!!

समझ से परे है,मरुधर में हरियाली थी"
सच मे हमसब के चेहरे की लाली थी!

उफ्फ तक भी न करती थी,
हर समस्या का समाधान बन जाती थी!

यही सोचती हूँ मै अक्सर,वो कैसे स्नेह भी इतना वो भी सबको कैसे देती थी
वो सच मे कैसे सब कर लेती थी???

Comments

  1. बहुत ही सुन्दर कृति...❤️ Amazing

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