ये यादें भी न कितनी अजीब होतीं हैं
बस कहीं से भी चलीं आतीं हैं!
इन्हें कितना भी रोको रुकती नहीं है ये
छोटी सी दरारों से!
अधखुली खिड़की से!
टूटे हुए रोशन दान से!
टपकती छत से!
सीलन वाली दीवारों से!
बस उन्हें तो आना ही है
आकर बस जाना है बस!
फिर न जाने के लिए
कल ही टूटे हुए रौशन दान से एक याद
बस गिरने को ही थी कि मैंने थाम लिया उसे!
लगा जैसे किसी अपने को थामा है!
फिर वो याद मुझसे और मैं उससे घण्टों बातेँ करते रहे!!
सुबह उस याद ने वादा किया वो फिर आयेगी
कभी न जाने के लिए!
कभी न जाने के लिए!
ये यादें भी न!!
Wow .... अद्भुत रचना 🫶🫶
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