*पूर्ण ही नहीं संपूर्ण थी मां
मेहनती ही नहीं निपुण थी मा*
*सीधी साधारण
पर बहुत समझदार
जेब देखकर खर्च करती
पर ह्रदय से अति उदार
मां की प्राथमिकताओं में
सर्वोपरि रहा उसका परिवार*
उसके भीतर लक्ष्मी,दुर्गा और सरस्वती जी का था वास
यूं हीं तो नहीं थी मां इतनी खास
तभी तो जो भी घर आया
लौटा नहीं ख़ाली हाथ
लगी बैठ कर जब ये सोचने,लगा कितना प्यारा सा था मां का साथ*
*मान सम्मान प्यार दुलार
की कभी कमी नहीं आई
मां थी जैसे शादी में हो शहनाई*
करती रही कर्म कमेरी मां
आज फिर उसकी याद आई
*प्रतिबद्धता* थी मां के भीतर श्री राम सी,साफ था लक्ष्य और साफ थी मां के जीवन की हर डगर
अपना सफर किया अपने ही तरीके से,सपनों को हकीकत में बदलने की नहीं छोड़ी कोई कसर
कोई भी बाधा ना बनी बाधक मां की राह में,मंजिल तक मां ने शिद्दत से किया सफर
जो सोचा वो कर ही लिया,
कोई भी अभाव मां के लक्ष्यों पर
प्रभाव नहीं डाल पाया
आज लगी बैठ जब ये सोचने,
लगा कितना शीतल कितना पावन था मां का साया
*कम आमदनी और बड़ा परिवार होने पर भी
सब काम संपन्न कराने में बाधा कहीं नहीं आई
उपलब्ध सीमित संसाधनों में भी जिसने वैभवता की अलख जलाई*
अक्षरज्ञान भले ही ना था मां को
पर मनोविज्ञान में जैसे पी एच डी
की डिग्री पाई थी
होम साइंस में मां थी मेरी अव्वल
सामंजस्य से की सगाई थी
*सबको प्यार किया सबसे प्यार मिला
सबको अपना बनाया यही थी उसकी सच्ची कमाई*
*बेगाने भी हो जाते थे अपने,
मां मरुधर में जैसे शीतल पुरवाई*
*धड़धड़ाती ट्रेन से मां के वजूद के आगे थरथराते पुल सी शख्शियत मैंने है पाई*
*हर बच्चा पढ़ें और अफ़सर बने
ख़्वाब यही बुना था
हम सब पढ़ पाए और कुछ बन पाए तभी ऐसी माँ को हमने चुना था*
सब काम करती रही सहजता से,
चेहरे पर शिकन कभी नहीं आई
हर समय परिवार और मेहमानों का ध्यान रखा
सहजता की मां ने सदा अलख जलाई
*कभी नहीं मनमानी की
जाने कितने ही समझौतों पर शांति की धूप जलाई*
*ऐसी विलक्षण थी मां मेरी,
जिसने संकल्प को सिद्धि की राह दिखाई*
*उसे क्या सब कुछ करना
बचपन से ही आता था ???
कितनी मेहनत कर के
औरों को खिलाने में
आनंद घणा उसे आता था*
या उसने सब कुछ करते करते
सीखा था
स्वादिष्ट खाना बनाना
एकदम एक सार गोल रोटी बनाना
चाहे गेहूं बाजरा या मक्की
तंदूर हो , चूल्हा स्टोव या फिर गैस
घर साफ़ करना हो या हो फिर हो भैंस का दूध निकालना , ज्वार काटना
चारा बनाना या चूल्हा लीपना
बाजरे की खिचड़ी या सरसों का साग
खीर बनाना मक्खन निकालना हारा लगाना
सुहाली पापड़ बनाना ,
होली दीवाली राखी तीज खूब चाव से हर त्योहार मनाना
कभी न थकना कभी न हारना
हर हाल में सहजता से मुसकुराना
बेटी के ब्याह में बिछोह का दुख ह्रदय में
फिर भी गीत गाकर नाचना
कितने रंग कितने रूप मेरी माँ के
सोचती हूँ क्या उसी की बेटी हूँ मैं
उसकी अंश मात्र भी नहीं मुझ में
*मेरी माँ की जीवनी किसी शानदार कहानी से कम नहीं
उसके बारे में बताना इतनी मुझमें हिम्मत नहीं*
इतना विस्तृत व्यक्तित्व है उसका
जिसकी गोद में पूरी दुनिया होती थी हमारी
11 स्वर और 33 व्यंजन भी नहीं सक्षम जो बता पाए मां थी कितनी जग से न्यारी
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